अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...) |
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हिम के हत संकुचित प्रकृति अब फूली | हिम के हत संकुचित प्रकृति अब फूली | ||
19:19, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
हिम के हत संकुचित प्रकृति अब फूली
रूप-राग-रस-गंध-भार भर झूली
रंगों से अभिभूत हुई चट्टानें
जड़ता में जागीं जीवन की तानें
नभ में भी आलोक-नील गहराया
सागर ने संगीत तरंगित गाया
आठ रूप शिव के, समाधि को त्यागे
मृण्मय अवनी के अंगों में जागे
वासंतिक वैभव यौवन पर आया
हरा-भरा संसार खिला मुस्काया ।