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"यह इतनी बड़ी अनजानी दुनिया / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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यह इतनी बड़ी अनजानी दुनिया है | यह इतनी बड़ी अनजानी दुनिया है | ||
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कि होती जाती है, | कि होती जाती है, | ||
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यह छोटा-सा जाना हुआ क्षण है | यह छोटा-सा जाना हुआ क्षण है | ||
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कि हो कर नहीं देता; | कि हो कर नहीं देता; | ||
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यह मैं हूँ | यह मैं हूँ | ||
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कि जिस में अविराम भीड़ें रूप लेती | कि जिस में अविराम भीड़ें रूप लेती | ||
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उमड़ती आती हैं, | उमड़ती आती हैं, | ||
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यह भीड़ है | यह भीड़ है | ||
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कि उस में मैं बराबर मिटता हुआ | कि उस में मैं बराबर मिटता हुआ | ||
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डूबता जाता हूँ; | डूबता जाता हूँ; | ||
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ये पहचानें हैं | ये पहचानें हैं | ||
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जिन से मैं अपने को जोड़ नहीं पाता | जिन से मैं अपने को जोड़ नहीं पाता | ||
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ये अजनबियतें हैं | ये अजनबियतें हैं | ||
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जिन्हें मैं छोड़ नहीं पाता । | जिन्हें मैं छोड़ नहीं पाता । | ||
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मेरे भीतर एक सपना है | मेरे भीतर एक सपना है | ||
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यानी कि सपना मेरा है या मैं सपने का | यानी कि सपना मेरा है या मैं सपने का | ||
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और यह बाहर जो ठोस है | और यह बाहर जो ठोस है | ||
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मुझे ऐसा निश्चय है कि वह है, है; | मुझे ऐसा निश्चय है कि वह है, है; | ||
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जिसे कहने लगूँ तो | जिसे कहने लगूँ तो | ||
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− | + | कि ऐसा है कि मुझे निश्चय है! | |
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00:46, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
यह इतनी बड़ी अनजानी दुनिया है
कि होती जाती है,
यह छोटा-सा जाना हुआ क्षण है
कि हो कर नहीं देता;
यह मैं हूँ
कि जिस में अविराम भीड़ें रूप लेती
उमड़ती आती हैं,
यह भीड़ है
कि उस में मैं बराबर मिटता हुआ
डूबता जाता हूँ;
ये पहचानें हैं
जिन से मैं अपने को जोड़ नहीं पाता
ये अजनबियतें हैं
जिन्हें मैं छोड़ नहीं पाता ।
मेरे भीतर एक सपना है
जिसे मैं देखता हूँ कि जो मुझे देखता है, मैं नहीं जान पाता।
यानी कि सपना मेरा है या मैं सपने का
इतना भी नहीं पहचान पाता।
और यह बाहर जो ठोस है
(जो मेरे बाहर है या जिस के मैं बाहर हूँ?)
मुझे ऐसा निश्चय है कि वह है, है;
जिसे कहने लगूँ तो
यह कह आता है
कि ऐसा है कि मुझे निश्चय है!