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"कुछ कद्दू चमकाए मैंने / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

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कुछ कद्दू चमकाए मैंने
 
कुछ कद्दू चमकाए मैंने
 
 
कुछ रास्तों को गुलज़ार किया
 
कुछ रास्तों को गुलज़ार किया
 
 
कुछ कविता-टविता लिख दीं तो
 
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हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया
 
हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया
 
  
 
अब हुई रात अपना ही दिल सीने में भींचे बैठा हूँ
 
अब हुई रात अपना ही दिल सीने में भींचे बैठा हूँ
 
 
हाँ जीं हाँ वही कनफटा हूँ, हेठा हूँ
 
हाँ जीं हाँ वही कनफटा हूँ, हेठा हूँ
 
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टेलीफ़ोन की बग़ल में लेटा हूँ
टेलीफोन की बगल में लेटा हूँ
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रोता हूँ धोता हूँ रोता-रोता धोता हूँ
 
रोता हूँ धोता हूँ रोता-रोता धोता हूँ
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तुम्हारे कपड़ों से ख़ून के निशाँ धोता हूँ
  
तुम्हारे कपडों से ख़ून के निशाँ धोता हूँ
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जो न होना था वही सब हुवाँ-हुवाँ
 
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जो न होना था वही सब हुवां हुवां
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अलबत्ता उधर गहरा खड्ड था इधर सूखा कुआँ
 
अलबत्ता उधर गहरा खड्ड था इधर सूखा कुआँ
 
 
हरदोई मे जीन्स पहनी बेटी को देख
 
हरदोई मे जीन्स पहनी बेटी को देख
 
 
प्रमुदित हुई कमला बुआ
 
प्रमुदित हुई कमला बुआ
 
  
 
तब रमीज़ कुरैशी का हाल ये था
 
तब रमीज़ कुरैशी का हाल ये था
 
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कि बम फोड़ा जेल गया
कि बम फोडा जेल गया
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वियतनाम विजय की ख़ुशी में
 
वियतनाम विजय की ख़ुशी में
 
 
कचहरी पर अकेले ही नारे लगाए
 
कचहरी पर अकेले ही नारे लगाए
 
 
चाय की दुकान खोली
 
चाय की दुकान खोली
 
 
जनता पार्टी में गया वहाँ भी भूखा मरा
 
जनता पार्टी में गया वहाँ भी भूखा मरा
 
 
बिलाया जाने कहॉ
 
बिलाया जाने कहॉ
 
 
उसके कई साथी इन दिनों टीवी पर चमकते हैं
 
उसके कई साथी इन दिनों टीवी पर चमकते हैं
 
 
मगर दिल हमारे उसी के लिए सुलगते हैं
 
मगर दिल हमारे उसी के लिए सुलगते हैं
 
  
 
हाँ जीं कामरेड कज्जी मज़े में हैं
 
हाँ जीं कामरेड कज्जी मज़े में हैं
 
 
पहनने लगे है इधर अच्छी काट के कपडे
 
पहनने लगे है इधर अच्छी काट के कपडे
 
 
राजा और प्रजा दोनों की भाषा जानते हैं
 
राजा और प्रजा दोनों की भाषा जानते हैं
 
 
और दोनों का ही प्रयोग करते हैं अवसरानुसार
 
और दोनों का ही प्रयोग करते हैं अवसरानुसार
 
 
काल और स्थान के साथ उनके संकलन त्रय के दो उदहारण
 
काल और स्थान के साथ उनके संकलन त्रय के दो उदहारण
 
 
उनकी ही भाषा में :
 
उनकी ही भाषा में :
 
 
" रहे न कोई तलब कोई तिश्नगी बाकी
 
" रहे न कोई तलब कोई तिश्नगी बाकी
 
 
बढ़ा के हाथ दे दो बूँद भर हमे साकी "
 
बढ़ा के हाथ दे दो बूँद भर हमे साकी "
 
 
"मजे का बखत है तो इसमे हैरानी क्या है
 
"मजे का बखत है तो इसमे हैरानी क्या है
 
 
हमें भी कल्लैन दो मज्जा परेसानी क्या है "
 
हमें भी कल्लैन दो मज्जा परेसानी क्या है "
 
  
 
अनिद्रा की रेत पर तड़ पड़ तड़पती रात
 
अनिद्रा की रेत पर तड़ पड़ तड़पती रात
 
 
रह गई है रह गई है अभी कहने से
 
रह गई है रह गई है अभी कहने से
 
 
सबसे ज़रूरी बात।
 
सबसे ज़रूरी बात।
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12:53, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


कुछ कद्दू चमकाए मैंने
कुछ रास्तों को गुलज़ार किया
कुछ कविता-टविता लिख दीं तो
हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया

अब हुई रात अपना ही दिल सीने में भींचे बैठा हूँ
हाँ जीं हाँ वही कनफटा हूँ, हेठा हूँ
टेलीफ़ोन की बग़ल में लेटा हूँ
रोता हूँ धोता हूँ रोता-रोता धोता हूँ
तुम्हारे कपड़ों से ख़ून के निशाँ धोता हूँ

जो न होना था वही सब हुवाँ-हुवाँ
अलबत्ता उधर गहरा खड्ड था इधर सूखा कुआँ
हरदोई मे जीन्स पहनी बेटी को देख
प्रमुदित हुई कमला बुआ

तब रमीज़ कुरैशी का हाल ये था
कि बम फोड़ा जेल गया
वियतनाम विजय की ख़ुशी में
कचहरी पर अकेले ही नारे लगाए
चाय की दुकान खोली
जनता पार्टी में गया वहाँ भी भूखा मरा
बिलाया जाने कहॉ
उसके कई साथी इन दिनों टीवी पर चमकते हैं
मगर दिल हमारे उसी के लिए सुलगते हैं

हाँ जीं कामरेड कज्जी मज़े में हैं
पहनने लगे है इधर अच्छी काट के कपडे
राजा और प्रजा दोनों की भाषा जानते हैं
और दोनों का ही प्रयोग करते हैं अवसरानुसार
काल और स्थान के साथ उनके संकलन त्रय के दो उदहारण
उनकी ही भाषा में :
" रहे न कोई तलब कोई तिश्नगी बाकी
बढ़ा के हाथ दे दो बूँद भर हमे साकी "
"मजे का बखत है तो इसमे हैरानी क्या है
हमें भी कल्लैन दो मज्जा परेसानी क्या है "

अनिद्रा की रेत पर तड़ पड़ तड़पती रात
रह गई है रह गई है अभी कहने से
सबसे ज़रूरी बात।