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11:36, 25 मई 2008 के समय का अवतरण
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वो तो एक पीर था
जो दूजे पीर से मिला
एक के पास दूध का कटोरा था- मुँह तक भरा
दूसरे के पास चमेली का फूल
माथों के तेज से
वस्तुएं अर्थों में बदल गईं
हम तो चलती हुई राह हैं
किसी मोड़, किसी चौराहे पर मिलते हैं
एक-दूजे के पास से गुजर जाते हैं
या एक-दूजे से बिछुड़ जाते हैं
वो भी एक चुप का दूसरी चुप से संवाद था
यह भी एक चुप का दूसरी चुप से संवाद है।