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"निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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10:14, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

सभी धर्मों का वहशीपन अगर काफ़ूर हो जाए।
मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए।

हसीं मूरत को दिल में दो जगह, सर पे न बैठाओ,
जहाँ से गिर पड़े तो पल में चकनाचूर हो जाए।

हसीना साथ हो तेरे तो रख दिल पे ज़रा काबू,
तेरे चेहरे की रंगत से न वो मशहूर हो जाए।

लहू हो या पसीना हो बस इतना चाहता हूँ मैं,
निकलकर जिस्म से मेरे न ये मग़रूर हो जाए।

जहाँ मरहम लगाते हैं वहीं फिर घाव देते हैं,
कहीं ये दिल्लगी उनकी न एक नासूर हो जाए।