भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जग ने कैसा मुझको बना दिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
छो |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
रब ने वैसा मुझको बना दिया। | रब ने वैसा मुझको बना दिया। | ||
− | गा | + | गा-गा कर सबने इसकी महिमा, |
केवल पैसा मुझको बना दिया। | केवल पैसा मुझको बना दिया। | ||
भूल हुई दुनिया से तो भुगते, | भूल हुई दुनिया से तो भुगते, | ||
− | + | क्यों कर ऐसा मुझको बना दिया। | |
मान ख़ुदा लूँगा उसको जिसने, | मान ख़ुदा लूँगा उसको जिसने, | ||
मेरे जैसा मुझको बना दिया। | मेरे जैसा मुझको बना दिया। | ||
</poem> | </poem> |
10:19, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
जग ने कैसा मुझको बना दिया।
सबके जैसा मुझको बना दिया।
नफ़रत की थी जिस से जीवन भर,
रब ने वैसा मुझको बना दिया।
गा-गा कर सबने इसकी महिमा,
केवल पैसा मुझको बना दिया।
भूल हुई दुनिया से तो भुगते,
क्यों कर ऐसा मुझको बना दिया।
मान ख़ुदा लूँगा उसको जिसने,
मेरे जैसा मुझको बना दिया।