(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय }} ओ ए...) |
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14:46, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
ओ एक ही कली की
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी!