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ओ एक ही कली की
 
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मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
 
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:दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!
::दूसरी, चम्पई पंखुड़ी !
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हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
 
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
 
 
हमारे बीच में से होती
 
हमारे बीच में से होती
 
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उड़ जायेगी!
उड़ जायेगी !
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14:46, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

ओ एक ही कली की
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी!