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| ''आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?'' | | ''आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?'' |
− | आजकल, बकौल जनविजय जी, मुक्तिबोध को बिना पूछे चांद का मुँह टेढ़ा कर रहा हूँ। असल में आजकल अज्ञेय
| + | कुछ नहीं कर रहा। एक साल के लिए सब बंद। इस एक साल में भी अगर इम्तिहान में फ़ेल हो गया तो हमेशा के लिए बंद। मम्मा-पापा ने रोक लगा दी। माफी चाहूँगा।--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|सुमितकुमार कटारिया]]([[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]]) १४:५४, ७ मई २००८ (UTC) |
− | की 'कितनी नावों में कितनी बार' टाइप कर रहा हूँ, उसे लायब्रेरी को लौटाने की जल्दी है। बाद में मुक्तिबोध
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− | की किताब पूरी करूँगा।
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− | (उम्मीद करता हूँ, बल्कि मेरा इस तआरुफ़ को लिखने का इरादा भी यही है, कि अब दूसरे सदस्य मेरे लिए
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− | 'जी' या 'आप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।)
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− | अरे सुमित जी ! भैया, आप इतने अच्छे ढंग से चांद का मुँह टेढ़ा कर रहे हैं कि कुछ वर्षों बाद लोग आप को 'आप' ही नहीं 'बाप' कहना शुरू कर देंगे । इस उम्र में यह हाल है तो आप आगे क्या करेंगे ? ख़ैर, आपकी बात का मान रखते हुए आगे 'तुम' ही कहूंगा ।
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− | भैया मेरे, शाबास ! बहुत अच्छा काम कर रहे हो । मैं तुम्हारे साथ हूँ । कविता में रुचि लेते हो, कविता पढ़ते हो तो कविता लिखते भी होंगे ? या अभी लिखना शुरू नहीं किया है ? हिन्दी भाषा की और हिन्दी साहित्य की समझ इसी उम्र में विकसित होकर मज़बूत बनेगी । इसलिए ख़ूब ज़्यादा से ज़्यादा साहित्य पढ़ने की कोशिश करना ।
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− | मैं अपना ई-मेल का पता लिख रहा हूँ, कभी भी कोई बात पूछनी हो या कुछ कहना हो तो मुझे लिख सकते हो । तुम जैसे नौजवान हैं तो भारत का भविष्य और हिन्दी का भविष्य उज्जवल है ।
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− | सिर्फ़ इस बात का ख़्याल रखो कि हिन्दी में 'पूछना' क्रिया के लिए 'से' कारक का इस्तेमाल होता है ।
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− | यानि "मुक्तिबोध को बिना पूछे" की जगह "मुक्तिबोध से बिना पूछे" लिखना चाहिए ।
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− | अनिल जनविजय, aniljanvijay@gmail.com
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− | ==पुस्तक की शैली==
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− | सुमित जी, पुस्तक की शैली का अर्थ है कि पुस्तक में जो सामग्री है वह किस शैली (छंद, विधा इत्यादि) में लिखी गयी है। आपने कहा ''"मुझे कविता कोश पर एक कविता संग्रह बता दीजिए, जिसमें किसी ने विषय और शैली की लाइन में कुछ भरा हो।"'' -तो चलिये आपको बताने का प्रयास करता हूँ: [[रामचरितमानस / तुलसीदास]] को देखिये -यहाँ शैली दी गयी है -और भी कई संग्रहों में आपको गीत, ग़ज़ल इत्यादि शैली मिल जाएगी। आपने "भूमिका" की बात भी की। यदि आप पुस्तक की भूमिका भी जोड़ना चाहते हैं तो उसे रचनाओं के सूची में ही <nowiki>[[भूमिका / संग्रह का नाम]]</nowiki> के प्रारूप में जोड़ सकते हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है -परन्तु मुझे याद नहीं आ रहा कि किस संग्रह में ऐसा किया गया था। आशा है आपके उत्तेजित प्रश्न को उसका संतोषजनक उत्तर मिल गया होगा :-) आप कोश में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं! '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०९:२३, ३ फरवरी २००८ (UTC)'''
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− | प्रिय भाई सुमित, 'मुझे याद आते हैं' में आवश्यक सुधार कर उसे यथास्थान सुरक्षित भी कर दिया है।--[[सदस्य:Hemendrakumarrai|Hemendrakumarrai]] १५:३१, ३ फरवरी २००८ (UTC)
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20:25, 7 मई 2008 के समय का अवतरण
मेरा नाम सुमित है। उम्र 17 ('07 में), रहनवारी जयपुर की है। साहित्य का शौकीन हूँ।
कविताओं के बारे में ज़िक्र करूँ तो, सबसे पहले जो कविता मुझे पसंद आयी वो मेरी दसवीं की हिन्दी की किताब
में अज्ञेय की 'मैं वहाँ हूँ' थी, इससे पहले मुझे कॉमिक्स और नंदन-चंदामामा सरीखी पत्रिकाओं का चस्का था।
फिर museindia.com के एक अंक में श्रीकान्त वर्मा की 'मायादर्पण' और उस पर उनके खुद के लिखे लेख
का अंग्रेज़ी में तर्जुमा पढ़ा था। वो लेख मेरी कविता की समझ का स्रोत है। मुक्तिबोध की मेरे लिए बहुत महत्ता है।
उनसे मैंने 'न' कहना सीखा है।
आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?
कुछ नहीं कर रहा। एक साल के लिए सब बंद। इस एक साल में भी अगर इम्तिहान में फ़ेल हो गया तो हमेशा के लिए बंद। मम्मा-पापा ने रोक लगा दी। माफी चाहूँगा।--सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) १४:५४, ७ मई २००८ (UTC)