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अभिलाषा / एन. आर. सागर

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अर्द्ध-विकसित अथवा कलुषित मस्तिष्क की
तब जाग सकता है कैसे
इसके प्रति श्रद्धा का भाव ?सहज लगाव ?
फिर भी मैं चाहता हूँ मन्दिर में प्रवेश
और बनना पुजारी
देव-मूर्ति के सान्निध्य में रहकर
एक मानव कैसे बन जाता है
पाषाण-हृदय अमानव ?
अपने भोग की सामग्री जोड़ने
जन की श्रद्धा को अपनी ओर मोड़ने
वह धर्म का स्वांग कैसे सजाता है ?
सरल का दोहन करने
निर्बल का शोषण करने
कैसे-कैसे कुचक्र चलाता है ?
कथित ईश्वर-कृत ग्रन्थों के
आधारहीन सन्दर्भों को
स्वरचित आख्यानों से
कैसे प्रामाणिक ठहराता है ?
भोले- भाले सरल नागरिकों को
अनेकार्थक गूढ़ भाषा-प्रवचन से
मूर्ख कैसे बनाता है ?
हाँ-हाँ मैं चाहता हूँ पुजारी बनना
देवालय की चल-अचल सम्पत्ति पर
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