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जब कहते हो तुम / पूजा कनुप्रिया
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12:16, 17 जुलाई 2015
<poem>
जब कहते हो ये तुम
मेरी जुल्फों में क़ैद
हे
है
बादल सुबह मुहताज
हे
है
पलकों के उठने की
आँखों में बन्द हैं
सागर नदी बरसात सब
सूरज हथेली में सजा रक्खा है
बाँध रक्खी है हवाएँ आँचल से
चाँद को छत पे बुला रक्खा
हे
है
तुम ही तो कहते हो
अनिल जनविजय
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