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18:57, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण
तितलियां बारिश में खुलकर भीगती है
बेटियां जूडो-कराटे सीखती हैं
दिक्कतें बुलवा रही हों झूठ जब भी
गैरतें कालर पकड़ कर रोकती हैं
ट्रेन में कुछ देर तक बातें हुई थी
आज भी उसको निगाहें खोजती हैं
लालचें फिर खोजती हैं इक नया घर
नेकियां दरिया का रास्ता पूछती हैं