Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नही...) |
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14:14, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण
फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं
राहरौ<ref>पथिक</ref> होगा, कहीं और चला जायेगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़ुबार<ref>धूल</ref>
लड़खड़ाने लगे ऐवानों<ref>महलों</ref> में ख़्वाबीदः चिराग़
सो गई रस्तः तक-तक के हरइक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिये क़दमों के सुराग़
गुल करो शम्एँ, बढ़ा दो मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़<ref>शराब, सुराही और प्याला</ref>
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल<ref>ताला लगाना</ref> कर लो
अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा
शब्दार्थ
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