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"वसन्त की रात-1 / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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खिड़की के पास खड़ी होकर
 
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वो चांद पकड़ना चाहे
 
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फैली थी वितान में ऊपर
 
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उसकी दो पतली बाहें
 
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चमक रहा था उसका चेहरा
 
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थी वसन्त की रात
 
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चेहरे पर बरस रहा था उसके
 
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चन्द्रकिरणों का प्रपात
 
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19:21, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

खिड़की के पास खड़ी होकर
वो चांद पकड़ना चाहे
फैली थी वितान में ऊपर
उसकी दो पतली बाहें

चमक रहा था उसका चेहरा
थी वसन्त की रात
चेहरे पर बरस रहा था उसके
चन्द्रकिरणों का प्रपात