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|संग्रह=पहला उपदेश / अनिल कुमार सिंह
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पतझर में नंगे हो गए पेड़ हो सकते हो
ठूँठ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!
पतझर में नंगे हो गए पेड़ हो सकते हो<br>तुम्हें याद है न ठूँठ तो गए शिशिर में मिले थे हम-तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!<br><br>और कितनी देर तक सोचते रहे थे एक-दूसरे के बारे में
तुम्हें याद है न<br>आज भी जब सर्द हवाएँ चलती हैं गए शिशिर तो उड़ती हुई धूल और पत्तों में मिले थे हम-तुम<br>सबसे साफ़ और कितनी देर तक सोचते रहे थे<br>स्पष्ट एक-दूसरे के बारे में<br><br>दिखाई देता है तुम्हारा ही चेहरा
आज भी जब सर्द हवाएँ चलती हैं<br>किन्हीं फाड़ दिए गए पत्रों की स्मृतियों का तो उड़ती हुई धूल और पत्तों में<br>सबसे साफ़ और स्पष्ट<br>दिखाई देता कौन सा दस्तावेज़ है तुम्हारा ही चेहरा<br><br>तुम्हारे पास?
किन्हीं फाड़ दिए गए पत्रों की स्मृतियों का<br>‘इस शून्य तापमान में कौन सा दस्तावेज़ है तुम्हारे पास?<br><br>कितनी गर्म और मुलायम हैं तुम्हारी हथेलियाँ’- ये कुछ ऐसी बातें हैं जो मुझे आश्चर्यचकित करती हैं
‘इस शून्य तापमान में<br>कितनी गर्म और मुलायम हैं<br>तुम्हारी हथेलियाँ’-<br>ये कुछ ऐसी बातें हैं<br>हवाओं से स्वच्छंद हो सकते हो जो मुझे आश्चर्यचकित करती हैं<br><br>अंधड़ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!
गर्म हवाओं हम एक बर्फीली नदी में यात्रा कर रहे हैं अक्सर अपनी घुटती साँसों से स्वच्छंद मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ कहाँ से लाते हो सकते हो<br>ऑक्सीजन अंधड़ तो तुम नहीं ही कहाँ से पाते हो मेरे दोस्त!<br><br>इतनी ऊर्जा
हम एक बर्फीली नदी में यात्रा कर रहे हैं<br>अक्सर अपनी घुटती साँसों से<br>मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ<br>कहाँ से लाते हो ऑक्सीजन<br>कहाँ से पाते हो इतनी ऊर्जा<br><br> एक मुँहफट किसान हो सकते हो<br>
गँवार तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!
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