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प्रतीक्षा / अपर्णा अनेकवर्णा
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05:52, 8 जून 2016
कितने ही सितारे टाँके..
ख़ुशफ़हमियों की रातों में..
कि
रौशन
रोशन
रहें ये राहें तुम्हारी..
पर तमन्नाएँ भी सुर्खाब हुआ करती हैं
अपनी मर्ज़ी से परवाज़ हुआ करती हैं..
अनिल जनविजय
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