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"यो जिन्दगी खै के जिन्दगी ! / हरिभक्त कटुवाल" के अवतरणों में अंतर
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यो जिन्दगी खै के जिन्दगी !! | यो जिन्दगी खै के जिन्दगी !! | ||
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08:04, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
भित्रभित्र खोक्रिएर बाहिर बाहिर बाँचेको
एटमको त्रासले चुसेको
समस्याको भूतले सताएको
यो जिन्दगी खै के जिन्दगी !
बन्दुकको नालमा टाउको राखेर जिदाउनु पर्छ यहाँ
खुकुरीको धारमा पाइताला टेकेर जिउनु पर्छ यहाँ
आँखा चिम्लनु पनि जगजगी, आँखा उघार्न पनि जगजगी
यो जिन्दगी खै के जिन्दगी !
पसलमा शोकेशभित्र सजाएर राखेको
काँचको चुरा जस्तो यो जिन्दगी
कुनै युवतीको हातमा चढ्दाचढ्दै
प्याट्ट फुट्न सक्छ यो जिन्दगी !
रबरको सस्तो चप्पल जस्तै यो जिन्दगी !
बाटामा हिँड्दाहिँड्दै
च्याट्ट टुट्न सक्छ यो जिन्दगी !
यो जिन्दगी खै के जिन्दगी !!
०००
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यहाँ क्लिक करके इस कविता का एक हिंदी अनुवाद पढ़ा जा सकता है।