अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> फिर ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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फिर एक बार | फिर एक बार | ||
− | + | क्योराल<ref>कचनार </ref> खिल उठा है | |
जबकि अब भी बह रहा है | जबकि अब भी बह रहा है | ||
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राम नदी के जल में | राम नदी के जल में | ||
रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत | रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत | ||
− | भूखे पेट सी | + | भूखे पेट-सी |
मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए | मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए | ||
सरसों के विरुद्ध | सरसों के विरुद्ध | ||
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मछुवारे निकल पड़े हैं | मछुवारे निकल पड़े हैं | ||
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सबकुछ जानते, समझते हुए | सबकुछ जानते, समझते हुए | ||
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राम नदी के बहाव की | राम नदी के बहाव की | ||
विपरीत दिशा में! | विपरीत दिशा में! | ||
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इस वक्त, | इस वक्त, | ||
गेहूँ की नन्हीं बालें | गेहूँ की नन्हीं बालें | ||
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आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध! | आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध! | ||
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09:24, 10 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
फिर एक बार
क्योराल<ref>कचनार </ref> खिल उठा है
जबकि अब भी बह रहा है
ह्यूँ-गल<ref>बर्फ़ वाला ठण्डा पानी</ref>
राम नदी के जल में
रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत
भूखे पेट-सी
मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए
सरसों के विरुद्ध
खड़ा है चीड़ का पीला क्यूर<ref>चीड़ के फलों से निकलने वाला पीला पराग (जिसके हवा में घुलने से सर दर्द होता है)</ref>
मछुवारे निकल पड़े हैं
हाथों में डोरी लिए
बल्सी के मुँह पर
चारा लगाते हुए
सबकुछ जानते, समझते हुए
पीली गदराई चखट्टे वाली महासीर<ref>पहाड़ी मछली की प्रजाति</ref>
चलने लगी है उकाल<ref>ऊपर की ओर</ref> की तरफ़
राम नदी के बहाव की
विपरीत दिशा में!
बाँज<ref>ओक</ref> के पेड़ों पर
सुनहरा पलाँ<ref>कोपल</ref> फूट रहा है
इस वक्त,
गेहूँ की नन्हीं बालें
ओलों से लड़ रही हैं खुले आम
आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध!