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"दरिन्दे समय के विरुद्ध / अनिल कार्की" के अवतरणों में अंतर

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फिर एक बार  
 
फिर एक बार  
क्योराल1 खिल उठा है
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क्योराल<ref>कचनार </ref> खिल उठा है
  
 
जबकि अब भी बह रहा है  
 
जबकि अब भी बह रहा है  
ह्यूँ-गल2
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ह्यूँ-गल<ref>बर्फ़ वाला ठण्डा पानी</ref>
 
राम नदी के जल में   
 
राम नदी के जल में   
  
 
रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत
 
रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत
भूखे पेट सी  
+
भूखे पेट-सी  
 
मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए  
 
मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए  
 
सरसों के विरुद्ध  
 
सरसों के विरुद्ध  
खड़ा है चीड़ का पीला क्यूर3
+
खड़ा है चीड़ का पीला क्यूर<ref>चीड़ के फलों से निकलने वाला पीला पराग (जिसके हवा में घुलने से सर दर्द होता है)</ref>
  
 
मछुवारे निकल पड़े हैं   
 
मछुवारे निकल पड़े हैं   
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सबकुछ जानते, समझते हुए  
 
सबकुछ जानते, समझते हुए  
पीली गदरायी चखट्टे वाली महासीर4
+
पीली गदराई चखट्टे वाली महासीर<ref>पहाड़ी मछली की प्रजाति</ref>
चलने लगी है उकाल5 की तरफ
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चलने लगी है उकाल<ref>ऊपर की ओर</ref> की तरफ़
 
राम नदी के बहाव की  
 
राम नदी के बहाव की  
 
विपरीत दिशा में!  
 
विपरीत दिशा में!  
  
बाँज6 के पेड़ों पर  
+
बाँज<ref>ओक</ref> के पेड़ों पर  
सुनहरा पलाँ7 फूट रहा है
+
सुनहरा पलाँ<ref>कोपल</ref> फूट रहा है
 
इस वक्त,  
 
इस वक्त,  
 
गेहूँ की नन्हीं बालें   
 
गेहूँ की नन्हीं बालें   
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आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध!
 
आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध!
  
 
+
{{KKMeaning}}
1.कचनार 2.बर्फ वाला ठंडा पानी 3. चीड़ के फलों से निकलने वाला पीला पराग (जिसके हवा में घुलने से सर दर्द होता है) 4. पहाड़ी मछली की प्रजाति 5. ऊपर की ओर 6. ओक 7. कोपल
+
   
 
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09:24, 10 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

फिर एक बार
क्योराल<ref>कचनार </ref> खिल उठा है

जबकि अब भी बह रहा है
ह्यूँ-गल<ref>बर्फ़ वाला ठण्डा पानी</ref>
राम नदी के जल में

रेवाड़ी हवाओं से उड़ रही है रेत
भूखे पेट-सी
मरोड़ वाला भँवर बनाते हुए
सरसों के विरुद्ध
खड़ा है चीड़ का पीला क्यूर<ref>चीड़ के फलों से निकलने वाला पीला पराग (जिसके हवा में घुलने से सर दर्द होता है)</ref>

मछुवारे निकल पड़े हैं
हाथों में डोरी लिए
बल्सी के मुँह पर
चारा लगाते हुए

सबकुछ जानते, समझते हुए
पीली गदराई चखट्टे वाली महासीर<ref>पहाड़ी मछली की प्रजाति</ref>
चलने लगी है उकाल<ref>ऊपर की ओर</ref> की तरफ़
राम नदी के बहाव की
विपरीत दिशा में!

बाँज<ref>ओक</ref> के पेड़ों पर
सुनहरा पलाँ<ref>कोपल</ref> फूट रहा है
इस वक्त,
गेहूँ की नन्हीं बालें
ओलों से लड़ रही हैं खुले आम

आसमान बने दरिन्दे समय के विरुद्ध!

शब्दार्थ
<references/>