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"अमरनाथ श्रीवास्तव / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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इलाहाबाद के अमरनाथ श्रीवास्तव पिछले चार दशकों से हिंदी गीतों की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर बने हुए हैं।  आपके तीन गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का द्वारा आपको 'निराला' नामित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आपके गीत भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्रिकाओं तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी शामिल हुए हैं।
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इलाहाबाद के अमरनाथ श्रीवास्तव पिछले चार दशकों से हिंदी गीतों की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर बने हुए हैं।  आपके तीन गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का द्वारा आपको 'निराला पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। आपके गीत भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्रिकाओं तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी शामिल हुए हैं।
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== एक और परिचय==
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नवगीत परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षर अमरनाथ श्रीवास्तव नहीं रहे। रविवार को अपराह्न् तीन बजे गोविन्दपुर स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। 1937 में गाजीपुर जिले में जन्मे अमरनाथ श्रीवास्तव ने अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘गेरु की लिपियाँ’, ‘दोपहर में गुलमोहर’, ‘आदमी को देखकर’ एवं ‘है बहुत मुमकिन’ प्रमुख रूप से शामिल हैं।
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शब्दों के प्रयोग में हमेशा चौकन्ने मगर शालीन रहे अमरनाथ श्रीवास्तव का काव्य शिल्प एकदम से अलग किस्म का होता था। गीतों की शास्त्रीय भूमि में वह यथार्थ भावों के सुंदर बीज इस निपुणता के साथ बोते थे कि अर्थपूर्ण शब्दों की फसल लहलहा उठती थी।
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लेखन और प्रकाशन के तमाम किन्तु परन्तु से अलग इस साहित्य मनीषी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने दो बार निराला सम्मान से नवाजा।

23:33, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

इलाहाबाद के अमरनाथ श्रीवास्तव पिछले चार दशकों से हिंदी गीतों की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर बने हुए हैं। आपके तीन गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का द्वारा आपको 'निराला पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। आपके गीत भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्रिकाओं तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी शामिल हुए हैं।

एक और परिचय

नवगीत परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षर अमरनाथ श्रीवास्तव नहीं रहे। रविवार को अपराह्न् तीन बजे गोविन्दपुर स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। 1937 में गाजीपुर जिले में जन्मे अमरनाथ श्रीवास्तव ने अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘गेरु की लिपियाँ’, ‘दोपहर में गुलमोहर’, ‘आदमी को देखकर’ एवं ‘है बहुत मुमकिन’ प्रमुख रूप से शामिल हैं।

शब्दों के प्रयोग में हमेशा चौकन्ने मगर शालीन रहे अमरनाथ श्रीवास्तव का काव्य शिल्प एकदम से अलग किस्म का होता था। गीतों की शास्त्रीय भूमि में वह यथार्थ भावों के सुंदर बीज इस निपुणता के साथ बोते थे कि अर्थपूर्ण शब्दों की फसल लहलहा उठती थी।

लेखन और प्रकाशन के तमाम किन्तु परन्तु से अलग इस साहित्य मनीषी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने दो बार निराला सम्मान से नवाजा।