भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
  {{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=दिविक रमेश
 +
|संग्रह=खुली आँखों में आकाश / दिविक रमेश
 +
}} 
  
      माँ
+
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
  
रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
+
दूध बिलोने से पहले
दूध बिलौने से पहले
+
माँ
+
चक्की पीसती,
+
और मैं
+
घूमेड़े में
+
आराम से
+
सोता .
+
  
- तारीफ़ों में बँधीं
+
माँ  
माँ
+
जिसे मैंने कभी
+
सोते
+
नहीं देखा .
+
  
आज
+
चक्की पीसती,
जवान होने पर
+
एक प्रश्न घुमड़ आया है -
+
  
पिसती
+
और मैं
चक्की थी
+
या
+
माँ
+
  
माँ .
+
घूमेड़े में
 +
 
 +
आराम से
 +
 
 +
सोता ।
 +
 
 +
 
 +
::::-तारीफ़ों में बंधीं
 +
 
 +
::::माँ
 +
 
 +
::::जिसे मैंने कभी
 +
 
 +
::::सोते
 +
 
 +
::::नहीं देखा ।
 +
 
 +
 
 +
आज
 +
 
 +
जवान होने पर
 +
 
 +
एक प्रश्न घुमड़ आया है--
 +
 
 +
 
 +
::::पिसती
 +
 
 +
::::चक्की थी
 +
 
 +
::::या माँ?

08:13, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

 

रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे

दूध बिलोने से पहले

माँ

चक्की पीसती,

और मैं

घूमेड़े में

आराम से

सोता ।


-तारीफ़ों में बंधीं
माँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा ।


आज

जवान होने पर

एक प्रश्न घुमड़ आया है--


पिसती
चक्की थी
या माँ?