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"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

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रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
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रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
दूध बिलौने से पहले
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माँ
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चक्की पीसती,
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और मैं
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घूमेड़े में
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सोता .
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दूध बिलोने से पहले
माँ
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जिसे मैंने कभी
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सोते
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नहीं देखा .
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आज
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माँ
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08:13, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

 

रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे

दूध बिलोने से पहले

माँ

चक्की पीसती,

और मैं

घूमेड़े में

आराम से

सोता ।


-तारीफ़ों में बंधीं
माँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा ।


आज

जवान होने पर

एक प्रश्न घुमड़ आया है--


पिसती
चक्की थी
या माँ?