भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
   
+
  {{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=दिविक रमेश
 +
|संग्रह=खुली आँखों में आकाश / दिविक रमेश
 +
}} 
 +
 
 +
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
 +
 
 +
दूध बिलोने से पहले
  
रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
 
दूध बिलौने से पहले
 
 
माँ  
 
माँ  
 +
 
चक्की पीसती,
 
चक्की पीसती,
 +
 
और मैं
 
और मैं
 +
 
घूमेड़े में
 
घूमेड़े में
 +
 
आराम से
 
आराम से
सोता
 
  
तारीफ़ों में बँधीं
+
सोता ।
माँ
+
 
जिसे मैंने कभी
+
 
सोते  
+
::::-तारीफ़ों में बंधीं
नहीं देखा  
+
 
 +
::::माँ
 +
 
 +
::::जिसे मैंने कभी
 +
 
 +
::::सोते  
 +
 
 +
::::नहीं देखा
 +
 
  
 
आज
 
आज
 +
 
जवान होने पर
 
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है -
 
  
पिसती
+
एक प्रश्न घुमड़ आया है--
चक्की थी
+
 
या
+
 
माँ
+
::::पिसती
 +
 
 +
::::चक्की थी
  
माँ
+
::::या माँ?

08:13, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

 

रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे

दूध बिलोने से पहले

माँ

चक्की पीसती,

और मैं

घूमेड़े में

आराम से

सोता ।


-तारीफ़ों में बंधीं
माँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा ।


आज

जवान होने पर

एक प्रश्न घुमड़ आया है--


पिसती
चक्की थी
या माँ?