भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन की चिड़िया / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा |संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा }} वह ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा
 
|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
वह चिड़िया जो मेरे आंगन में चिल्लाई,<br>
+
<poem> 
मेरे सब पिछले जन्मों की<br>
+
वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लाई,
संगवारिनी-सी इस घर आई;<br>
+
मेरे सब पिछले जन्मों की
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!!<br><br>
+
संगवारिनी-सी इस घर आई;
 +
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से !!
  
हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए,<br>
+
हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए,
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया,<br>
+
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया,
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं,<br>
+
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं,
हर पगडंडी पर जिसने मुझको दुहराया,<br>
+
हर पगडंडी पर जिसने मुझको दुहराया,
मैं उस चिड़िया को <br>
+
मैं उस चिड़िया को  
दुहराउँ किन गानों से!!<br><br>
+
दुहराउँ किन गानों से !!
  
वह जो मेरी हर यात्रा में<br>
+
वह जो मेरी हर यात्रा में
मेरे आगे डोली,<br>
+
मेरे आगे डोली,
अन्धकार में टेर पकड़ कर<br>
+
अन्धकार में टेर पकड़ कर
जिसकी मैंने राह टटोली,<br>
+
जिसकी मैंने राह टटोली,
जिसने मुझको हर घाटी में,<br>
+
जिसने मुझको हर घाटी में,
हर घुमाव पर आवाज़ें दीं,<br>
+
हर घुमाव पर आवाज़ें दीं,
जो मेरे मन की चुप्पी का<br>
+
जो मेरे मन की चुप्पी का
डिम्ब फाड़ कर मुझ से बोली;<br>
+
डिम्ब फाड़ कर मुझ से बोली;
उसको वाणी दूँ?<br>
+
उसको वाणी दूँ?
किस मुख? किन अनुमानों से?<br><br>
+
किस मुख? किन अनुमानों से?
  
वह जिसको मैंने अपनी <br>
+
वह जिसको मैंने अपनी  
हर धड़कन में महसूस किया है<br>
+
हर धड़कन में महसूस किया है
वह जिसने नदियाँ जी हैं<br>
+
वह जिसने नदियाँ जी हैं
आकाश जिए हैं, खेत जिया है,<br>
+
आकाश जिए हैं, खेत जिया है
वह जो मेरे शब्द शब्द में<br>
+
वह जो मेरे शब्द शब्द में
छिपी हुई है, बोल रही है,<br>
+
छिपी हुई है, बोल रही है,
वह जिसने दे अमृत मुझे<br>
+
वह जिसने दे अमृत मुझे
मेरे अनुभव का ज़हर पिया है,<br>
+
मेरे अनुभव का ज़हर पिया है,
मैं उसको उपमा दूँ, तो<br>
+
मैं उसको उपमा दूँ, तो
किस नीलकंठ, किन उपमानों से??<br>
+
किस नीलकंठ, किन उपमानों से ??
 +
</poem>

18:34, 22 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

  
वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लाई,
मेरे सब पिछले जन्मों की
संगवारिनी-सी इस घर आई;
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से !!

हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए,
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया,
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं,
हर पगडंडी पर जिसने मुझको दुहराया,
मैं उस चिड़िया को
दुहराउँ किन गानों से !!

वह जो मेरी हर यात्रा में
मेरे आगे डोली,
अन्धकार में टेर पकड़ कर
जिसकी मैंने राह टटोली,
जिसने मुझको हर घाटी में,
हर घुमाव पर आवाज़ें दीं,
जो मेरे मन की चुप्पी का
डिम्ब फाड़ कर मुझ से बोली;
उसको वाणी दूँ?
किस मुख? किन अनुमानों से?

वह जिसको मैंने अपनी
हर धड़कन में महसूस किया है
वह जिसने नदियाँ जी हैं
आकाश जिए हैं, खेत जिया है
वह जो मेरे शब्द शब्द में
छिपी हुई है, बोल रही है,
वह जिसने दे अमृत मुझे
मेरे अनुभव का ज़हर पिया है,
मैं उसको उपमा दूँ, तो
किस नीलकंठ, किन उपमानों से ??