Last modified on 26 दिसम्बर 2009, at 17:33

"स्कूल / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा }} पहल...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मोहन राणा
 
|रचनाकार=मोहन राणा
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा
+
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
पहले मुझे क़िताब की जिल्द मिली
 
पहले मुझे क़िताब की जिल्द मिली
 
 
फिर एक कॉपी
 
फिर एक कॉपी
 
 
बस्ते में और कुछ नहीं बचा इतने बरस बाद
 
बस्ते में और कुछ नहीं बचा इतने बरस बाद
 
 
घंटी सुनते ही जाग पड़ा
 
घंटी सुनते ही जाग पड़ा
 
 
मैदान में कोई नहीं था दसवीं बी में भी कोई नहीं
 
मैदान में कोई नहीं था दसवीं बी में भी कोई नहीं
 
 
क्या आज स्कूल की छुट्टी है सोचा मैंने
 
क्या आज स्कूल की छुट्टी है सोचा मैंने
 
 
हवाई जहाज मध्य यूरोप में कहीं था और मैं
 
हवाई जहाज मध्य यूरोप में कहीं था और मैं
 
 
कई बरस पहले अपने स्कूल  
 
कई बरस पहले अपने स्कूल  
 
  
 
धरती ने ली सांस
 
धरती ने ली सांस
 
 
हँसा समुंदर
 
हँसा समुंदर
 
 
आकाश खोज में है अनंतता की
 
आकाश खोज में है अनंतता की
 
  
 
बहुत पहले मैंने उकेरा अपना नाम मेज पर
 
बहुत पहले मैंने उकेरा अपना नाम मेज पर
 
 
समय की त्वचा के नीचे धूमिल
 
समय की त्वचा के नीचे धूमिल
 
 
कोई तारीख़
 
कोई तारीख़
 
  
 
कोई दोपहर उड़ा लाती हवा के साथ
 
कोई दोपहर उड़ा लाती हवा के साथ
 
 
किसी बात की जड़
 
किसी बात की जड़
 
 
मैं वह दीवार हूँ
 
मैं वह दीवार हूँ
 
 
जिसकी दरार में उगा है वह पीपल
 
जिसकी दरार में उगा है वह पीपल
  
 
+
'''रचनाकाल: 5.9.2006
 
+
</poem>
5.9.2006
+

17:33, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

पहले मुझे क़िताब की जिल्द मिली
फिर एक कॉपी
बस्ते में और कुछ नहीं बचा इतने बरस बाद
घंटी सुनते ही जाग पड़ा
मैदान में कोई नहीं था दसवीं बी में भी कोई नहीं
क्या आज स्कूल की छुट्टी है सोचा मैंने
हवाई जहाज मध्य यूरोप में कहीं था और मैं
कई बरस पहले अपने स्कूल

धरती ने ली सांस
हँसा समुंदर
आकाश खोज में है अनंतता की

बहुत पहले मैंने उकेरा अपना नाम मेज पर
समय की त्वचा के नीचे धूमिल
कोई तारीख़

कोई दोपहर उड़ा लाती हवा के साथ
किसी बात की जड़
मैं वह दीवार हूँ
जिसकी दरार में उगा है वह पीपल

रचनाकाल: 5.9.2006