"झन लगाव आगी / चेतन भारती" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चेतन भारती |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> निच्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=चेतन भारती | |रचनाकार=चेतन भारती | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=ठोमहा भर घाम |
}} | }} | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
+ | {{KKCatChhattisgarhiRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
निच्चट परबुधिया झन जानव, | निच्चट परबुधिया झन जानव, |
22:15, 26 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
निच्चट परबुधिया झन जानव,
गवई-गांव अब जागत हे।
कुदारी बेंठ म उचका के कुदाही,
छाये उसनिंदा अब भागत हे।।
जांगर टोरे म बोहाथे पसीना,
जाके भुइयां तब हरियाथे
चटके पेट जब खावा बनथे,
चिरहा पटका लाज बचाथे ।।
स्वारथ ल चपके पंवरी म,
ढेलवानी रचत, करनी तोर जानत हे ।
मोर गंवई गांव...
जन –जन के पीरा हरके ओमन,
सुख के नवा फर लाये बर ठाने हे ।
जिन्गी के दर्रा म धंदाये दंदरत,
सबके छइहां बन मन बांटे हे ।।
टांग के घाम ल ओमन खुंटी में,
झांझ में उसनावत, बुता बनाये आवत हे ।
मोर गंवई गांव....
सागर सही ओ चुप-चुप रहिथे,
झन समझव उंकर कमजोरी ये ।
कभू बड़ोरा बनके जुरियाये आहीं,
तब झन कहिहव अंगरा उंकर बोली ये ।।
सेंध फोरइया, फोन पार बनइया,
देखत मने मन, ओ पहिचानत हे ।
मोर गंवई गांव...
छाती चीरे हनुमान रही ओमन,
धरती फोर के रामधन उपजावत हे ।
रावण बनके कतको गरजब,
मिहनत के अंगद बन आवत हे ।।
झन लगाव आगी ये भुइया मं,
सबो जर जाही, येला वो जानत हे ।
मोर गंवई गांव...