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− | |रचनाकार= देवीदत्त शर्मा पराजुली
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− | हेर प्यारि ! तिमि लाज नमान, एक हूँ दुइ जना भनि जान ।
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− | भेट भो भनि लिईकन हर्क झटृ सुन्दरि ! यतातिर फर्क ।।१।।
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− | धेर कालतकको छ कबोल, बल्ल भेट हुनगो अनमोल ।
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− | कोहि छैनन प्रिये ! अरु साथी, व्यर्थ लज्जित हुन्छ ममाथी ।।२।।
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− | मनमहाँ लिइ टूलो अभिलाषा, चोलि लाइकन ताशकि खासा ।
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− | कोरि केशहरु ती अति काला, हातमा पनि लगायर बाला ।।३।।
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− | काल्टिकी असल सिम्रिकलाई, टल्कनेकन गरेर जमाई ।
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− | भालमा पनि छ छाप सितारा, मात गर्छन कि निर्मल तारा ।।४।।
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− | घाँटि सुन्दर छ शङ्घसमान, मुन्द्रि ढुङ्ग्रिहरुपूर्ण छ कान ।
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− | लाल माणिक जडाउ तयारी क्या, अमोल छ त यारिङ भारी ।।५।।
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− | प्यारि ! त्यो वदन चन्द्रसमान, ओठमा पनि त लाल छ पान ।
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− | क्या मनोहर छ लाल कपोल, सुन्दरी ! रसिलि भैकन बोल ।।६।।
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− | भारि सारिकन खुप सम्हारी, पारि नक्कल सबैतिर भारी ।
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− | इारि गर्न भनि आइ तयारी, हुन्न नाञि भननू किन प्यारी ! ।।७।।
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− | कोरि बाटिकन सुन्दर केश, फूलहेरु शिरमा घरि वेश ।
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− | एकली निमि शुरुशुरु आयौ, दङ्गदास भय रङ्ग जमायौ ।।८।।
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− | देख्दा भमर पंक्तिसरीको, झल्कने सुन निधारभरीको ।
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− | हेर्दछु अलकको पनि शोभा, गर्छ जुन अलकले मन तोभा ।।९।।
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− | चूरिको छनन शव्द छ भारी, पाउजेप अनि कल्लि बजारी ।
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− | छम्म छम्म हुनगो सुन सोर, थाह हुन्छ चुरिहेरु नजोर ।।११।।
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− | यो ऋतु पनि वसन्त छ भारी, एकली तिमी पनी त तयारी ।
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− | रातको बखत यो छ अपार, हैन सुन्दरि ! पछेउरि सार ।।१२।।
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− | कोइली कुहु-कुहु मन हर्ने शव्द गर्छन हरे ! सब हर्ने ।
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− | सिर्र-सिर्र मलयाचल वात लाग्छ सुन्दरि ! समातन हात ।।१३।।
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− | कामले गरिरक्यो जिउ आधा वस्न शक्तिन ठुलो भइ बाधा ।
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− | गर्दछयौ किन अनाहक झेल हुन्न सुन्दरि ! गराउँछु मेल ।।१४।।
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− | गर्दछु अधर चुम्बन आज, व्यर्थ सुन्दरि ! नमानन लाज ।
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− | त्यो मनोहर पछेउरि सरि, हेर्दछु प्रियतमे ! सय हार ।।१५।।
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− | रुप, रंग रसकी तिमि खानी छयौ भनीकन बराबर जानी ।
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− | भैरहेछ अहिले मन दङ्ग गर्दछयौ किन प्रिये ! रसरङ्ग ।।१६।।
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− | ख्यै न ख्यै पटुकी हेर्दछु भारी, ख्वैन चोलि कसतो छतयारी ।
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− | हेनैद्मौ मकन ठुङ्ग्रि र हार, सुन्दरि ! छि घुमटो अलि सार ।।१७।।
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− | सुन्दरी ! जगतमा म समान छैन कोइ लिइ यो अभिमान ।
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− | बिध्न पारनु त व्यर्थ छ आज, धेर सुन्दरि ! नमानन लाज ।।१८।।
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− | के गरीकन रिजाउनु मैले, काखमा लिउँ कि सुन्दरि ! एले ।
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− | पाउ दापनु त पर्दछ फेरी, गर्दछ्यौ किन अनाहक देरी ।।१९।।
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− | धेर बेर पनि बस्न हुँदैन, सुन्दरि भनन मन छ कि छैन ।
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− | छैन ता अब बिदा पनि पाॐ, अलटाल गरि के घर जाॐ ।।२०।।
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− | वाणी सुनेर रसिला मन-मोह-कारी
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− | सारै न लज्जित भयेकि तिनी पियारि ।
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− | जाऊ नजाउ भनि केहि नबोलि बात
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− | अनन्दपूर्वक बिताउन अज रात ।।२१।।
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− | (*सूक्तिसिन्धु (फेरि), जगदम्बा प्रकाशन, २०२४)
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