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समधी ला कारण पूछेंव मंय, ओहर कुछ नइ दीस जुवापअउ दमांद तिर प्रश्न करेंव तब, ओहर फुंफकारिस जस सांप।खखुवा के फंकट पर बिफड़ेंव – “कहां करे धरमिन ला मोरसम्मुख लान करव अभि सुपरुत, वरना बना दुहूं गत तोर।”फंकट बोलिस -”बता तिंही हा – एक वायदा जे कर देस –मंय हा दुहूं फटफटी तोला, ओला लाने हस का साथ!तोर पास नइ फुटहा कौड़ी, तब काबर मारे हस डींगपास मं नइ हरिया अक भुंइया, पूछत पर के कतका खेत!चालबाज अस तंय सोचत हस – समधी के धन खाहंव लूटमगर दार हा चुरन पात नइ, तब चहली मतात सब खूंट।धरमिन हा खुद जीवन ला दिस, रुतो अपन तन माटीतेलपर तंय बद्दी डारत हम पर, हट जा वरना दुहूं गफेल।”फंकट धरिस मोर चेचा ला, घर ले बाहिर दीस खेदारमुड़ ला पटकत उहां ला छोड़ेंव, पहुंच गेंव जे जगह बजार।हर मनसे के मुंह ले होवत धरमबती के चर्चा।उंकर बात सुन अइसे लगगिस – परत मोर पर बरछा।सुनन सकय नइ भिथिया तक हा, नम्मू किहिस कान मं मोर –“होना रिहिस तेन तो होगिस, अब तंय घिरिया बात जतेक।घटना ला लइका तक जानत – हतियारा हे तोर दमांदमगर साक्ष्य ला दिही कोन हा, फंकट रख दिस सब ला बांध।अगर भूल के बोम मचाबे, तोरेच पर आहय सब कष्टअसरुहवय बिकट चलवन्ता, राख बनाही जीवन तोर।”“हे कानून सबो के भल बर, तब काबर होहय अन्यायसुरुखुरुमंय थाना जावत, मोर दुखी के उंहे हियाव।”अतका बोल ओ जगहा ला तज, थाना पहुंच गेंव गोहरायबोलेंव – अत्याचार होय हे, तब मंय आय इहां तक दौड़।असरुडहर ढुलंग गें सब झन, लेवय कोन मोर अब पक्षयदि गोहार ला तुम सुन लेहव, तंहने निश्चय न्याय के जीत।”थानेदार हा मोला घूरिस, किहिस बाद मं डारा मार –“तोर टुरी हा मरिस जेन छन, चिरई घलो नई रिहिस मकान।संकरी लगा – भितर घर मं घुस, धरमिन आत्मघात कर लीसनिरपराध हें फंकट असरु, तंय झन बढ़ा व्यर्थ के बात।मंय फंसाय बर यत्न करे हंव, मगर प्रमाण हाथ नइ अै सआखिर प्रकरण ला खारिज कर, लहुट गेंव चुप उल्टा पांव।”मंय अड़बड़ करलई करेंव तंह, थानेदार भड़क गिस जोरतंहने छाती पर पथरा रख; लहुटेंव मुढ़ीपार के खोर।”दुखी पुसऊ ला दीस सांत्वना, फेर गरीबा बोलिस सोच –“लगथय – सबल धनी मन खाहंय, हिनहर के ओद्दा तन नोच।सब तन इहिच कथा ला सुनथंव – मनसे ला जेवत इन्सानदाइज दानव हा छुछुवावत, अब नइ बांचय जीयत प्राण।जब मंय एकर अंदर घुसथंव, दिखत नदानी स्वयं हमारएक खात धोखा तब दूसर, बत्तर अस देवत हे नेम।थोथना भार गिरत हन भर्रस, तंहने चेत लहुटथय खूंटऊंट जहां जंगल पर चढ़थय, ओकर भरभस जाथय टूट।घरमिन के शादी जोंगे हस बोर के खुद के पूंजी।दूध – दूहना दुनों फूटगें गोभत दुख के सूजी।जुगनू – सुरुज एक नइ होवंय, अन्तर होथय अन्धनिरन्धसब रहस्य ला जान के काबर, असरुसंग बनाय सम्बन्ध!धरमिन ला सुख पाहय कहि के, फंकट ला तंय लड़की देसलेकिन यहू बात ला जानत – धरती नभ होवंय नइ भेंट।पुचकट लछनी बचे हवय अभि, ओकर कइसे निभिहय ब्याहपूंजी पसरा राह पकड़ लिस, टोर भला अब खुद के न्याय?”धर के मुड़ी बइठ के उखरु, सुनत पुसऊ हा धर के ध्यानकहिथय -”सोला आना सत्तम, होगिस खतम मोर अभिमान।एक बिहाव मं नसना टूटिस, जतका अस धन जमों खुवारलछनी के शादी अब मुश्किल, जीवन मोर होत धिरकार।”जइतू बोलिस -”फिक्कर झन कर, हिम्मत अंड़ा बढ़ा तंय गोड़धीरज – कर्म साथ यदि होवत, मनसे जीत जथय सब होड़।लछनी के शादी जब होहय, तब झन करबे वर के छांटनेक व्यक्ति अउ बंहाबली संग, जोर सकत वैवाहिक गांठ।यदि बसुन्दरा तभो फिकर नइ, पर आदत मं निश्छल साफबिपत देख झन घबरा जावय, अइसन वर ला पहिली देख।हम उपदेश कहां ले देवन, उमर मं हम अन लइका तोरतंय जग के सब भेद ला जानत, अनुभव तक मं कुबल सजोर।”बुजरुक खिघू बहुत ला सुनथय, तंहने बफल के बोलिस सजोर-“अतिक बखत ले तोर सुने हंव, अब तुम सुनव बात ला मोर।तुम्मन आजकल के टूरा, बड़बड़ात बादर अस खूबलेकिन मदद करे ले भगथव, जइसे नंदा जथय बन दूब।खुद ला बड़ ज्ञानिक बोलत हस, बुजरुक ला देवत उपदेशअगर बिपत ला हरना होहय, तंहने घुसड़ जहय सब टेस।न्यायालय सच निर्णय देतिस, दैनिक सत्य बतातिस सोधतब फिर काकर गरज परे हे – इनकर डंट के करय विरोध!तंय हा चाहत देश के उन्नति, मगर विचार होय नइ पूर्णजलगस जनता कष्ट भोगिहय, कोदई समान छरा के चूर्ण।”खिघू एल्ह के ताना मारिस, तंह जइतू ला चढ़गे खारयद्यपि मनसे नींद ला भांजत, मगर चढ़त बिच्छी के झार।पूछिस -”काबर कहत बिस्कुटक, साफ बात ला सब तिर फोरअपन शक्ति भर मदद ला देहंव, मोर पांव पाछू नइ जाय।”धांधिस खिघू -”अगर राजू हस, लछनी संग कर लेव बिहावपुसऊ के फिक्र खतम चुर्रुस ले, ओकर जीवन नव उत्साह।”
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