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"वाह कलियुग! / हेमन्त शेष" के अवतरणों में अंतर

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वाह कलियुग!
 
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काम पर जाते हुए
 
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हम रोज़ प्रार्थना करते हैं
 
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एक न एक शव को।
 
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घर लौट कर शीशा देखते हैं
 
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प्रणाम करते हुए डरते हैं
 
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हम नित्य
 
हम नित्य
 
 
प्रणाम करने वालों के लिए।
 
प्रणाम करने वालों के लिए।
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11:47, 17 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

वाह कलियुग!
काम पर जाते हुए
हम रोज़ प्रार्थना करते हैं
एक न एक शव को।
घर लौट कर शीशा देखते हैं
प्रणाम करते हुए डरते हैं
हम नित्य
प्रणाम करने वालों के लिए।