भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गळगचिया (5) / कन्हैया लाल सेठिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatRajasthaniRachna}} | {{KKCatRajasthaniRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | सूई, | ||
+ | तूं फूलां रो काळजो छेक‘र कांई काढ्यो? | ||
+ | डोरो तो हार में ही रहग्यो | ||
+ | पण तूं तो जीत में रै’र ही नागी-बूची ही रही। | ||
</poem> | </poem> |
15:18, 4 मार्च 2017 के समय का अवतरण
सूई,
तूं फूलां रो काळजो छेक‘र कांई काढ्यो?
डोरो तो हार में ही रहग्यो
पण तूं तो जीत में रै’र ही नागी-बूची ही रही।