अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गिरिधर राठी |संग्रह= निमित्त / गिरिधर राठी }} थोड़ा-सा व...) |
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02:35, 24 जून 2009 के समय का अवतरण
थोड़ा-सा वक़्त और चाहिए
और हालाँकि बन्द कर दिए गए हैं सभी दरवाज़े
झरोखे और सूराख़ लेकिन
यह जो बची-खुची रौशनी है इस कोठरी में
इस में तरतीब लाना कठिन है दरअसल
कठिन है अपने हाथ-पैर हिलाना भी क्योंकि
यह जो ढेर है हड्डियों का और लिसलिसा ख़ून
है मवाद है इसमें
कई फूल हैं ख़ुशबुएँ हैं चुम्बन हैं
रोगाणुओं के बीच भी सेहत और रौनक़
है इंसानी जिस्मों की कई-कई रंगों के केश हैं
लगभग सतरंगी नज़्ज़ारा है गो
बदबू है जहाँ ख़ुशबू है रंग है रौनक़ है
चुप्पी में ज़रा देर
ठहरो
मोहलत दो मुझे और
चाहिए कुछ
और
कुछ और
और वक़्त चाहिए थोड़ा-सा