आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
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14:17, 17 मार्च 2017 के समय का अवतरण
रूँखड़े परां पंखेरू एक एक तिणखलो चुग र आळो घाल्यों ! आँधी आई र आँख फरूकै जतै'क में आळै नै ले उड़ी । रूखड़ो कयो-आळो तो म्हारै डील पराँ हो तूं धींगाणै ही कियाँ अणखी ?