"रिश्ता / मनजीत इंदरा" के अवतरणों में अंतर
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रिश्ता क्या है ? | रिश्ता क्या है ? | ||
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इसकी बुनियाद किस पर है ? | इसकी बुनियाद किस पर है ? | ||
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कितनी होती है उम्र किसी भी रिश्ते की ? | कितनी होती है उम्र किसी भी रिश्ते की ? | ||
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बहुत लम्बी और शायद बहुत छोटी भी... | बहुत लम्बी और शायद बहुत छोटी भी... | ||
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रिश्ते दिलों के होते हैं | रिश्ते दिलों के होते हैं | ||
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कभी-कभार दिमाग के भी | कभी-कभार दिमाग के भी | ||
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पर सिर्फ़ कभी-कभी ही... | पर सिर्फ़ कभी-कभी ही... | ||
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रिश्ता रूह, जिस्म या केवल अहसास नहीं होता | रिश्ता रूह, जिस्म या केवल अहसास नहीं होता | ||
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रिश्ता पलछिन में नहीं बनता | रिश्ता पलछिन में नहीं बनता | ||
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रिश्ता मज़बूरी भी नहीं होता | रिश्ता मज़बूरी भी नहीं होता | ||
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और न ही रहम की बुनियाद पर टिकता है रिश्ता | और न ही रहम की बुनियाद पर टिकता है रिश्ता | ||
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रिश्ते की बुनियाद खोखली नहीं होती | रिश्ते की बुनियाद खोखली नहीं होती | ||
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अहसान भी नहीं होता रिश्ता | अहसान भी नहीं होता रिश्ता | ||
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और न ही फर्ज़... | और न ही फर्ज़... | ||
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फर्ज़ी रिश्ते जोड़े जाते हैं | फर्ज़ी रिश्ते जोड़े जाते हैं | ||
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ये बंधन पड़ते नहीं, बांधे जाते हैं... | ये बंधन पड़ते नहीं, बांधे जाते हैं... | ||
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पर आफ़ताब हमेशा आसमान पर ही रहे | पर आफ़ताब हमेशा आसमान पर ही रहे | ||
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यह भी तो ज़रूरी नहीं | यह भी तो ज़रूरी नहीं | ||
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कभी-कभी दिल के आंगन में भी उतर आता है चांद | कभी-कभी दिल के आंगन में भी उतर आता है चांद | ||
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कभी-कभी माथे पर भी उग आता है सूरज | कभी-कभी माथे पर भी उग आता है सूरज | ||
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सेक इस रवि का छाती में सुलगता है, मचता है | सेक इस रवि का छाती में सुलगता है, मचता है | ||
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पर कभी-कभार यह सेक जलाता है | पर कभी-कभार यह सेक जलाता है | ||
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फ़ना करता है... | फ़ना करता है... | ||
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पता नहीं किस रिश्ते की अंगुली पकड़ कर चल पड़ी हूँ मैं | पता नहीं किस रिश्ते की अंगुली पकड़ कर चल पड़ी हूँ मैं | ||
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पता नहीं किस राह हैं मेरे कदम | पता नहीं किस राह हैं मेरे कदम | ||
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पता नहीं इस राह की मंजिल भी होगी कोई कि नहीं ? | पता नहीं इस राह की मंजिल भी होगी कोई कि नहीं ? | ||
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दिल कहता है कि मंजिल से क्या लेना | दिल कहता है कि मंजिल से क्या लेना | ||
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दिमाग वरजता है– निश्चित मंजिल के बिना | दिमाग वरजता है– निश्चित मंजिल के बिना | ||
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रिश्ते या कदमों का | रिश्ते या कदमों का | ||
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मूल्य ही नहीं कोई... | मूल्य ही नहीं कोई... | ||
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दिल की दिमाग के आगे कुछ नहीं चलती | दिल की दिमाग के आगे कुछ नहीं चलती | ||
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जीतता है दिल और हारता भी... | जीतता है दिल और हारता भी... | ||
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कौन-सा रिश्ता है वह जो पाल रही हूँ मैं ? | कौन-सा रिश्ता है वह जो पाल रही हूँ मैं ? | ||
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कौन-सा पड़ाव है वह जिसकी तलाश में हूँ ? | कौन-सा पड़ाव है वह जिसकी तलाश में हूँ ? | ||
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कौन-से हैं दो पैर जो हमराह हैं मेरे ? | कौन-से हैं दो पैर जो हमराह हैं मेरे ? | ||
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किसकी हैं वो दो आँखें जो मेरे चेहरे पर है ? | किसकी हैं वो दो आँखें जो मेरे चेहरे पर है ? | ||
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और वही आँखें मेरी आमद की प्रतीक्षा करती हैं | और वही आँखें मेरी आमद की प्रतीक्षा करती हैं | ||
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वो कान जो मेरे कदमों की आहट के लिए बेचैन है ? | वो कान जो मेरे कदमों की आहट के लिए बेचैन है ? | ||
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रेत के घर नहीं होते रिश्ते | रेत के घर नहीं होते रिश्ते | ||
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बारिश की बूंदों को | बारिश की बूंदों को | ||
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हथेलियों पर इकट्ठा करने का नाम भी नहीं होता रिश्ता | हथेलियों पर इकट्ठा करने का नाम भी नहीं होता रिश्ता | ||
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रिश्ता फूल के खिलने का नाम होता होगा ? | रिश्ता फूल के खिलने का नाम होता होगा ? | ||
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भ्रम-सा... ख़ुदी ही शायद... अहं... | भ्रम-सा... ख़ुदी ही शायद... अहं... | ||
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सागर-सी लहर जैसे होते होंगे रिश्ते... शायद नहीं... | सागर-सी लहर जैसे होते होंगे रिश्ते... शायद नहीं... | ||
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ढलते सायों के संग ढल भी जाते होंगे रिश्ते... | ढलते सायों के संग ढल भी जाते होंगे रिश्ते... | ||
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नहीं जानती | नहीं जानती | ||
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क्या हैं रिश्ते ? कैसे हैं ? | क्या हैं रिश्ते ? कैसे हैं ? | ||
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यह रिश्ता जो पास बैठा है मेरे | यह रिश्ता जो पास बैठा है मेरे | ||
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मेरे दिल के करीब | मेरे दिल के करीब | ||
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नहीं सच तो यह है– मेरे दिल के अंदर | नहीं सच तो यह है– मेरे दिल के अंदर | ||
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मेरी हस्ती को लपेटे बैठा है | मेरी हस्ती को लपेटे बैठा है | ||
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मेरी तमाम ज़िंदगी के हासिल जैसा | मेरी तमाम ज़िंदगी के हासिल जैसा | ||
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क्या है यह ? | क्या है यह ? | ||
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कौन-सा उड़ता पंछी या तेज बहती हवा | कौन-सा उड़ता पंछी या तेज बहती हवा | ||
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पल्लू में बांध रही हूँ जिसको ? | पल्लू में बांध रही हूँ जिसको ? | ||
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किसका दामन है यह | किसका दामन है यह | ||
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जिसे कसकर पकड़ रही हूँ ? | जिसे कसकर पकड़ रही हूँ ? | ||
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खुदाया ! तौफ़ीक दे... हिम्मत और हौसला भी... | खुदाया ! तौफ़ीक दे... हिम्मत और हौसला भी... | ||
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पार हो जाऊँ इस भंवर में से | पार हो जाऊँ इस भंवर में से | ||
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पर शायद यह भंवर हो ही न | पर शायद यह भंवर हो ही न | ||
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पानी की लहर भर हो | पानी की लहर भर हो | ||
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सिर्फ़ भिगोकर ही... | सिर्फ़ भिगोकर ही... | ||
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आज का दिन | आज का दिन | ||
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आज की धूप | आज की धूप | ||
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आज की आमद | आज की आमद | ||
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ठंडी शीत फुहार हो... | ठंडी शीत फुहार हो... | ||
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और यह आज शायद सहज ही कल में बदल जाए | और यह आज शायद सहज ही कल में बदल जाए | ||
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और यह कल जे़हन की चीस बन जाए | और यह कल जे़हन की चीस बन जाए | ||
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यह माथे का सूरज छाती की जलन हो जाए | यह माथे का सूरज छाती की जलन हो जाए | ||
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यह दिल का चंद्रमा अंगारा बन | यह दिल का चंद्रमा अंगारा बन | ||
− | + | सब कुछ फूँक दे... | |
− | सब कुछ | + | |
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मैं आज हूँ | मैं आज हूँ | ||
− | + | कल भी थी | |
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और कल भी होऊँगी | और कल भी होऊँगी | ||
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कल– काला, कड़वा, कुरूप रहा | कल– काला, कड़वा, कुरूप रहा | ||
− | + | आज– आज़ाद परिंदे की तरह उड़ानें भरता... | |
− | आज– | + | |
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आज– वर्तमान मेरा | आज– वर्तमान मेरा | ||
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आज– मेरी जुस्तजू, मेरी सुंदरता, | आज– मेरी जुस्तजू, मेरी सुंदरता, | ||
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मेरा रूप, | मेरा रूप, | ||
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मेरा राह | मेरा राह | ||
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रौनक मेरी | रौनक मेरी | ||
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जिसके पैरों पर उड़ रही हूँ... | जिसके पैरों पर उड़ रही हूँ... | ||
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यह मेरी जन्नत | यह मेरी जन्नत | ||
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मेरा ज़ौक और शौक | मेरा ज़ौक और शौक | ||
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उंमगें मेरी | उंमगें मेरी | ||
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अनंत राहों का उजाला... | अनंत राहों का उजाला... | ||
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भला पूछो, कहाँ उड़ चली हूँ मैं ? | भला पूछो, कहाँ उड़ चली हूँ मैं ? | ||
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किस अनुपम दुनिया की ओर ले जा रही है यह उड़ान ? | किस अनुपम दुनिया की ओर ले जा रही है यह उड़ान ? | ||
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मेरा भ्रम या सच... | मेरा भ्रम या सच... | ||
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सच ! जो सदा सपना हुआ | सच ! जो सदा सपना हुआ | ||
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सच, जो शाश्वत रहा ही नहीं | सच, जो शाश्वत रहा ही नहीं | ||
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और फिर कौन-सा सच है यह | और फिर कौन-सा सच है यह | ||
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जिसे अपने केशों में सजा रही हूँ ? | जिसे अपने केशों में सजा रही हूँ ? | ||
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कौन-सा सच है जिसकी टिकली | कौन-सा सच है जिसकी टिकली | ||
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सजी मैं मेरे माथे पर ? | सजी मैं मेरे माथे पर ? | ||
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कहीं भ्रमजाल ही तो नहीं... छलावा ?... संकट ?...सज़ा ? | कहीं भ्रमजाल ही तो नहीं... छलावा ?... संकट ?...सज़ा ? | ||
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इतने सवालिया निशान ???? | इतने सवालिया निशान ???? | ||
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शायद, इसलिए कि भरोसा तिड़क गया हो... टूट गया हो... | शायद, इसलिए कि भरोसा तिड़क गया हो... टूट गया हो... | ||
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कयास करें तो विश्वास छलावे नहीं होते | कयास करें तो विश्वास छलावे नहीं होते | ||
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पर कई बार भ्रम विश्वास लगता है | पर कई बार भ्रम विश्वास लगता है | ||
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और जब टूटता है, उफ ! | और जब टूटता है, उफ ! | ||
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कोई पूछे– क्यों सह रही हूँ यह संताप ? | कोई पूछे– क्यों सह रही हूँ यह संताप ? | ||
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किस रिश्ते का कर रही हूँ बार-बार जाप ? | किस रिश्ते का कर रही हूँ बार-बार जाप ? | ||
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या किस रिश्ते की बुनियाद पर करती हूँ किंतु-परंतु ? | या किस रिश्ते की बुनियाद पर करती हूँ किंतु-परंतु ? | ||
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रिश्ता ब्रोच नहीं होता | रिश्ता ब्रोच नहीं होता | ||
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निर्जीव वस्तु नहीं होता रिश्ता | निर्जीव वस्तु नहीं होता रिश्ता | ||
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अनिश्चितता पर आधारित नहीं होता रिश्ता | अनिश्चितता पर आधारित नहीं होता रिश्ता | ||
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यह कोई ‘बाय-वे’ नहीं | यह कोई ‘बाय-वे’ नहीं | ||
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हाई-वे होता है रिश्ता | हाई-वे होता है रिश्ता | ||
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सर्वव्यापक | सर्वव्यापक | ||
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आनंदमयी... | आनंदमयी... | ||
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− | (कवयित्री की लंबी कविता ‘तू आवाज़ मारी है’ का आरंभिक अंश है जिसे उनके कविता संग्रह ‘तू आवाज़ मारी है’ से लिया गया | + |
10:35, 26 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
|
रिश्ता क्या है ?
इसकी बुनियाद किस पर है ?
कितनी होती है उम्र किसी भी रिश्ते की ?
बहुत लम्बी और शायद बहुत छोटी भी...
रिश्ते दिलों के होते हैं
कभी-कभार दिमाग के भी
पर सिर्फ़ कभी-कभी ही...
रिश्ता रूह, जिस्म या केवल अहसास नहीं होता
रिश्ता पलछिन में नहीं बनता
रिश्ता मज़बूरी भी नहीं होता
और न ही रहम की बुनियाद पर टिकता है रिश्ता
रिश्ते की बुनियाद खोखली नहीं होती
अहसान भी नहीं होता रिश्ता
और न ही फर्ज़...
फर्ज़ी रिश्ते जोड़े जाते हैं
ये बंधन पड़ते नहीं, बांधे जाते हैं...
पर आफ़ताब हमेशा आसमान पर ही रहे
यह भी तो ज़रूरी नहीं
कभी-कभी दिल के आंगन में भी उतर आता है चांद
कभी-कभी माथे पर भी उग आता है सूरज
सेक इस रवि का छाती में सुलगता है, मचता है
पर कभी-कभार यह सेक जलाता है
फ़ना करता है...
पता नहीं किस रिश्ते की अंगुली पकड़ कर चल पड़ी हूँ मैं
पता नहीं किस राह हैं मेरे कदम
पता नहीं इस राह की मंजिल भी होगी कोई कि नहीं ?
दिल कहता है कि मंजिल से क्या लेना
दिमाग वरजता है– निश्चित मंजिल के बिना
रिश्ते या कदमों का
मूल्य ही नहीं कोई...
दिल की दिमाग के आगे कुछ नहीं चलती
जीतता है दिल और हारता भी...
कौन-सा रिश्ता है वह जो पाल रही हूँ मैं ?
कौन-सा पड़ाव है वह जिसकी तलाश में हूँ ?
कौन-से हैं दो पैर जो हमराह हैं मेरे ?
किसकी हैं वो दो आँखें जो मेरे चेहरे पर है ?
और वही आँखें मेरी आमद की प्रतीक्षा करती हैं
वो कान जो मेरे कदमों की आहट के लिए बेचैन है ?
रेत के घर नहीं होते रिश्ते
बारिश की बूंदों को
हथेलियों पर इकट्ठा करने का नाम भी नहीं होता रिश्ता
रिश्ता फूल के खिलने का नाम होता होगा ?
भ्रम-सा... ख़ुदी ही शायद... अहं...
सागर-सी लहर जैसे होते होंगे रिश्ते... शायद नहीं...
ढलते सायों के संग ढल भी जाते होंगे रिश्ते...
नहीं जानती
क्या हैं रिश्ते ? कैसे हैं ?
यह रिश्ता जो पास बैठा है मेरे
मेरे दिल के करीब
नहीं सच तो यह है– मेरे दिल के अंदर
मेरी हस्ती को लपेटे बैठा है
मेरी तमाम ज़िंदगी के हासिल जैसा
क्या है यह ?
कौन-सा उड़ता पंछी या तेज बहती हवा
पल्लू में बांध रही हूँ जिसको ?
किसका दामन है यह
जिसे कसकर पकड़ रही हूँ ?
खुदाया ! तौफ़ीक दे... हिम्मत और हौसला भी...
पार हो जाऊँ इस भंवर में से
पर शायद यह भंवर हो ही न
पानी की लहर भर हो
गुज़र जाएगी सिर के ऊपर से
सिर्फ़ भिगोकर ही...
आज का दिन
आज की धूप
आज की आमद
ठंडी शीत फुहार हो...
और यह आज शायद सहज ही कल में बदल जाए
और यह कल जे़हन की चीस बन जाए
यह माथे का सूरज छाती की जलन हो जाए
यह दिल का चंद्रमा अंगारा बन
सब कुछ फूँक दे...
मैं आज हूँ
कल भी थी
और कल भी होऊँगी
कल– काला, कड़वा, कुरूप रहा
आज– आज़ाद परिंदे की तरह उड़ानें भरता...
आज– वर्तमान मेरा
आज– मेरी जुस्तजू, मेरी सुंदरता,
मेरा रूप,
मेरा राह
रौनक मेरी
जिसके पैरों पर उड़ रही हूँ...
यह मेरी जन्नत
मेरा ज़ौक और शौक
उंमगें मेरी
अनंत राहों का उजाला...
भला पूछो, कहाँ उड़ चली हूँ मैं ?
किस अनुपम दुनिया की ओर ले जा रही है यह उड़ान ?
मेरा भ्रम या सच...
सच ! जो सदा सपना हुआ
सच, जो शाश्वत रहा ही नहीं
और फिर कौन-सा सच है यह
जिसे अपने केशों में सजा रही हूँ ?
कौन-सा सच है जिसकी टिकली
सजी मैं मेरे माथे पर ?
कहीं भ्रमजाल ही तो नहीं... छलावा ?... संकट ?...सज़ा ?
इतने सवालिया निशान ????
शायद, इसलिए कि भरोसा तिड़क गया हो... टूट गया हो...
कयास करें तो विश्वास छलावे नहीं होते
पर कई बार भ्रम विश्वास लगता है
और जब टूटता है, उफ !
कोई पूछे– क्यों सह रही हूँ यह संताप ?
किस रिश्ते का कर रही हूँ बार-बार जाप ?
या किस रिश्ते की बुनियाद पर करती हूँ किंतु-परंतु ?
रिश्ता ब्रोच नहीं होता
निर्जीव वस्तु नहीं होता रिश्ता
अनिश्चितता पर आधारित नहीं होता रिश्ता
यह कोई ‘बाय-वे’ नहीं
हाई-वे होता है रिश्ता
सर्वव्यापक
आनंदमयी...
(यह कवयित्री की लंबी कविता ‘तू आवाज़ मारी है’ का आरंभिक अंश है जिसे उनके कविता-संग्रह ‘तू आवाज़ मारी है’ से लिया गया है।)