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"रात के दो बजे / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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खाँसती जा रही है बच्ची | खाँसती जा रही है बच्ची | ||
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खाँसते-खाँसते उठ-उठ कर बैठती-छिटकती | खाँसते-खाँसते उठ-उठ कर बैठती-छिटकती | ||
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कौंधता है रह-रह कर छाती में दर्द | कौंधता है रह-रह कर छाती में दर्द | ||
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कभी माँ कभी बाप की तरफ़ उमड़ती-घुमड़ती | कभी माँ कभी बाप की तरफ़ उमड़ती-घुमड़ती | ||
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गर्म तवे पर जल की बूंद-सी | गर्म तवे पर जल की बूंद-सी | ||
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तड़प-तड़प कर नाच रही है बच्ची | तड़प-तड़प कर नाच रही है बच्ची | ||
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दो तट थामे बाढ़ | दो तट थामे बाढ़ | ||
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रात के दो बजे | रात के दो बजे | ||
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रात के दो बजे हैं | रात के दो बजे हैं | ||
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सुख से सोया हैं संसार | सुख से सोया हैं संसार | ||
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और कोई रहड़-कटे खेत की खूँटियों पर | और कोई रहड़-कटे खेत की खूँटियों पर | ||
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चारों तरफ़ से घेरते आ रहे हत्यारे | चारों तरफ़ से घेरते आ रहे हत्यारे | ||
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::::हाथ में छुरा लिए | ::::हाथ में छुरा लिए | ||
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चमक रहा चांद गिर रही ओस | चमक रहा चांद गिर रही ओस | ||
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रात के दो बजे रात के | रात के दो बजे रात के | ||
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14:40, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
रात के दो बजे हैं
खाँसती जा रही है बच्ची
खाँसते-खाँसते उठ-उठ कर बैठती-छिटकती
कौंधता है रह-रह कर छाती में दर्द
कभी माँ कभी बाप की तरफ़ उमड़ती-घुमड़ती
गर्म तवे पर जल की बूंद-सी
तड़प-तड़प कर नाच रही है बच्ची
दो तट थामे बाढ़
रात के दो बजे
रात के दो बजे हैं
सुख से सोया हैं संसार
और कोई रहड़-कटे खेत की खूँटियों पर
भागता जा रहा है--
चारों तरफ़ से घेरते आ रहे हत्यारे
हाथ में छुरा लिए
चमक रहा चांद गिर रही ओस
रात के दो बजे रात के