भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सपने जैसा लगता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
 
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
  
 
वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है| <br>
 
वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है| <br>

09:51, 19 जून 2010 के समय का अवतरण

वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है|
पहला प्यार हमेशा सच्चा लगता है|

जैसे पीले पत्ते झरते आँगन में,
वैसे वो भी उखड़ा-उखड़ा लगता है|

नाच दिखाने तौल रहा जो पर अपने,
मोर कहीं वो रोया-रोया लगता है|

उसकी बातें और करो कुछ और कहो,
उसके किस्से सुनना अछ्छा लगता है|

इश्क, अदावत, खुशबू, पीड़ा,हँसी, छुअन,
बे चहरों के चहरे जैसा लगता है|

दिल वाले महसूस करेंगे इसे "विजय",
शेर ग़ज़ल का दिल का हिस्सा लगता है|