Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 14:31

"ज़ुर्म / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह = सबूत / अरुण कमल }} जब मेरा शरीर अस्सी घ...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
 
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
 
जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
 
 
और मैं बहुत मुश्किल से
 
और मैं बहुत मुश्किल से
 
 
::::पाँव टेकता
 
::::पाँव टेकता
 
 
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
 
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
 
 
::::दोस्तों के चेहरे पहचानता
 
::::दोस्तों के चेहरे पहचानता
 
 
 
वे आए
 
वे आए
 
 
लाशों को लांघते
 
लाशों को लांघते
 
 
इत्र लगाए
 
इत्र लगाए
 
 
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
 
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
 
 
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
 
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
 
::::::टूटा है
 
::::::टूटा है
 
 
 
हाँ
 
हाँ
 
 
मैंने माना
 
मैंने माना
 
 
बहुत बड़ी चूक है यह
 
बहुत बड़ी चूक है यह
 
 
बहुत बड़ा जुर्म
 
बहुत बड़ा जुर्म
 
 
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
 
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
 
 
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।
 
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।
 +
</poem>

14:31, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
और मैं बहुत मुश्किल से
पाँव टेकता
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
दोस्तों के चेहरे पहचानता
वे आए
लाशों को लांघते
इत्र लगाए
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
टूटा है
हाँ
मैंने माना
बहुत बड़ी चूक है यह
बहुत बड़ा जुर्म
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।