अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह = सबूत / अरुण कमल }} जब मेरा शरीर अस्सी घ...) |
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मैंने माना | मैंने माना | ||
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बहुत बड़ा जुर्म | बहुत बड़ा जुर्म | ||
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लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए | लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए | ||
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14:31, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
और मैं बहुत मुश्किल से
पाँव टेकता
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
दोस्तों के चेहरे पहचानता
वे आए
लाशों को लांघते
इत्र लगाए
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
टूटा है
हाँ
मैंने माना
बहुत बड़ी चूक है यह
बहुत बड़ा जुर्म
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।