"बाँगर और खादर / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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+ | राजाजी का बाग है, | ||
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+ | :::पर इस पर रहता है पहरा। | ||
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+ | राजाजी के पुरवे हैं, | ||
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+ | गाँव के गँवार | ||
+ | उसी में नहाते हैं, | ||
+ | कपड़े फींचते हैं, | ||
+ | आचमन करते हैं, | ||
+ | डाँगर भँसाते हैं, | ||
+ | उसी से पानी उलीच | ||
+ | पहलेज सींचते हैं, | ||
+ | और जो मर जायें उन की मिट्टी भी | ||
+ | :::वहीं होनी बदी है। | ||
+ | कुएँ का पानी | ||
+ | राजाजी मँगाते हैं, | ||
+ | :::शौक़ से पीते हैं। | ||
+ | नदी पर लोग सब जाते हैं, | ||
+ | उस के किनारे मरते हैं | ||
+ | :::उसके सहारे जीते हैं। | ||
+ | बाँगर का कुआँ | ||
+ | राजाजी का अपना है | ||
+ | लोक-जन के लिए एक | ||
+ | कहानी है, सपना है | ||
+ | खादर की नदी नहीं | ||
+ | किसी की बपौती की, | ||
+ | पुरवे के हर घरवे को | ||
+ | गंगा है अपनी कठौती की। | ||
− | + | '''नयी दिल्ली, 1 दिसम्बर, 1958''' | |
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11:57, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
बाँगर में
राजाजी का बाग है,
चारों ओर दीवार है
जिस में एक ओर द्वार है,
बीच-बाग़ कुआँ है
बहुत-बहुत गहरा।
और उस का जल
मीठा, निर्मल, शीतल।
कुएँ तो राजाजी के और भी हैं
-एक चौगान में, एक बाज़ार में-
पर इस पर रहता है पहरा।
खादर में
राजाजी के पुरवे हैं,
मिट्टी के घरवे हैं,
आगे खुली रेती के पार
सदानीरा नदी है।
गाँव के गँवार
उसी में नहाते हैं,
कपड़े फींचते हैं,
आचमन करते हैं,
डाँगर भँसाते हैं,
उसी से पानी उलीच
पहलेज सींचते हैं,
और जो मर जायें उन की मिट्टी भी
वहीं होनी बदी है।
कुएँ का पानी
राजाजी मँगाते हैं,
शौक़ से पीते हैं।
नदी पर लोग सब जाते हैं,
उस के किनारे मरते हैं
उसके सहारे जीते हैं।
बाँगर का कुआँ
राजाजी का अपना है
लोक-जन के लिए एक
कहानी है, सपना है
खादर की नदी नहीं
किसी की बपौती की,
पुरवे के हर घरवे को
गंगा है अपनी कठौती की।
नयी दिल्ली, 1 दिसम्बर, 1958