Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नागार्जुन }} सियासत में <br> न अड़ाओ <br> अपनी ये काँपती टाँ...) |
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+ | आहिस्ते से गुनगुनाना | ||
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+ | जे पीर पराई जाणे रे’’ | ||
+ | देखना, 2 अक्टूबर के | ||
+ | दिनों में उधर मत झाँकना | ||
+ | -जी, हाँ, महाराज ! | ||
− | + | 2 अक्टूबर वाले सप्ताह में | |
− | + | राजघाट भूलकर भी न जाना | |
− | + | उन दिनों तो वहाँ | |
− | + | तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है | |
− | + | कुर्ता भी फट सकता है | |
− | + | हाँ, बाबा, अर्जुन नागा ! | |
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− | राजघाट भूलकर भी न जाना | + | |
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− | तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है | + | |
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03:16, 30 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
सियासत में
न अड़ाओ
अपनी ये काँपती टाँगें
हाँ, महाराज !
राजनीतिक फतवेबाज़ी से
अलग ही रक्खो अपने को
माला तो है ही तुम्हारे पास
नाम-वाम जपने को
भूल जाओ पुराने सपने को
न रहा जाए, तो —
राजघाट पहुँच जाओ
बापू की समाधि से ज़रा दूर
हरी दूब पर बैठ जाओ
अपना वो लाल गमछा बिछाकर
आहिस्ते से गुनगुनाना
‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
जे पीर पराई जाणे रे’’
देखना, 2 अक्टूबर के
दिनों में उधर मत झाँकना
-जी, हाँ, महाराज !
2 अक्टूबर वाले सप्ताह में
राजघाट भूलकर भी न जाना
उन दिनों तो वहाँ
तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है
कुर्ता भी फट सकता है
हाँ, बाबा, अर्जुन नागा !