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"झर गये पात / बालकवि बैरागी" के अवतरणों में अंतर

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बिसर गई टहनी <br />
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करुण कथा जग से क्या कहनी ?<br />
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नव कोंपल के आते-आते<br />
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राम करे इस नव पल्लव को<br />
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पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी <br />
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करुण कथा जग से क्या कहनी ?
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पवन पाश में  पड़े पात ये <br />
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जनम-मरण में  रहे साथ ये<br />
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समा गई ऋतु की "मृगनयनी" <br />
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नव कोंपल के आते-आते
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--[[सदस्य:Saurabh2k1|Saurabh2k1]] ०९:१२, २ जून २००८ (UTC)
टूट गये सब के सब नाते
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राम करे इस नव पल्लव को
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पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी
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झर गये पात
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बिसर गई टहनी
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करुण कथा जग से क्या कहनी ?
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कहीं रंग है, कहीं राग है
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कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
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और धूसरित पात नाथ को
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टुक-टुक देखे शाख विरहनी
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झर गये पात
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बिसर गई टहनी
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करुण कथा जग से क्या कहनी ?
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पवन पाश में  पड़े पात ये
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जनम-मरण में  रहे साथ ये
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"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में 
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समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
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झर गये पात
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बिसर गई टहनी
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करुण कथा जग से क्या कहनी ?
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14:42, 2 जून 2008 के समय का अवतरण



झर गये पात

बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

--Saurabh2k1 ०९:१२, २ जून २००८ (UTC)