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| − | मेरी आँखों के नीर तुम्हें | + | मेरी आँखों के नीर तुम्हें |
| − | बहने का है अधिकार नहीं। | + | बहने का है अधिकार नहीं। |
| − | जो तुमको निधि कहकर रोके | + | जो तुमको निधि कहकर रोके |
| − | जीवन में अब वह प्यार | + | जीवन में अब वह प्यार नहीं। |
| − | है रहा कहाँ कुछ जीवन में | + | है रहा कहाँ कुछ जीवन में |
| − | बस बचे अधूरे सपने हैं, | + | बस बचे अधूरे सपने हैं, |
| − | जिसमें है भाव-समर्पण का | + | जिसमें है भाव-समर्पण का |
| − | जो अपनों से भी अपने हैं। | + | जो अपनों से भी अपने हैं। |
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| − | + | अब सिहर-सिहर इन सपनों को | |
| − | + | पंकिल करना स्वीकार नहीं। | |
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| − | सुन जिसने भी दुख को पाला | + | विचलित उर-अम्बुधि-लहरों में |
| − | वेदना लहर उसके मन में, | + | है विरह व्यथा का ज्वार बहुत, |
| − | जो आँसू व्यर्थ गँवाओगे | + | दुख से अकुलाए अधरों में |
| − | करुणा खोएगी जीवन में। | + | है दारुण-दुखद पुकार बहुत। |
| − | जिस उर में प्यार बसा प्रिय का | + | |
| − | अब भरो वहाँ अंगार नहीं। | + | कम होगा नहीं विरह आतप |
| + | दो व्यर्थ अश्रु उपहार नहीं। | ||
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| + | सुन जिसने भी दुख को पाला | ||
| + | वेदना लहर उसके मन में, | ||
| + | जो आँसू व्यर्थ गँवाओगे | ||
| + | करुणा खोएगी जीवन में। | ||
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| + | जिस उर में प्यार बसा प्रिय का | ||
| + | अब भरो वहाँ अंगार नहीं। | ||
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16:32, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
मेरी आँखों के नीर तुम्हें
बहने का है अधिकार नहीं।
जो तुमको निधि कहकर रोके
जीवन में अब वह प्यार नहीं।
है रहा कहाँ कुछ जीवन में
बस बचे अधूरे सपने हैं,
जिसमें है भाव-समर्पण का
जो अपनों से भी अपने हैं।
अब सिहर-सिहर इन सपनों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं।
विचलित उर-अम्बुधि-लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत,
दुख से अकुलाए अधरों में
है दारुण-दुखद पुकार बहुत।
कम होगा नहीं विरह आतप
दो व्यर्थ अश्रु उपहार नहीं।
सुन जिसने भी दुख को पाला
वेदना लहर उसके मन में,
जो आँसू व्यर्थ गँवाओगे
करुणा खोएगी जीवन में।
जिस उर में प्यार बसा प्रिय का
अब भरो वहाँ अंगार नहीं।