भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"म के गरूँ / विमल गुरुङ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
पंक्ति 6: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
एकाबिहानै यो के छट्पट? | एकाबिहानै यो के छट्पट? | ||
के वाक्क? | के वाक्क? |
08:43, 1 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
एकाबिहानै यो के छट्पट?
के वाक्क?
खुट्टा चट्टाईमा बजार्छु
थुक्छु भूईँतिर
एकाबिहानै यो के छट्पट
के गरूँ?
बानी बिगारी त्यो केटीले
सधैँ त्यसलाई देख्न पाए हुन्थ्यो जस्तो मात्र लाग्छ
उठाउँछु दृष्टि दिक्क भएर झ्वाट्ट रेडियोको छेउबाट
झर्छ एक पाना भूईँतिर
रिसाउँदै उठाउँछु
हेर्छु खाटमा पल्टेर
हेर्छु,
वाक्क लाग्छ
दिक्क लाग्छ
र
झट्कार्दै फ्याँकिदिन्छु एक कुनातिर ।
के गरूँ ?
किताबहरू पनि कुन हेर्नु
कुनै पढ्न मन लाग्दैन
सबै वाक्क लाग्छ
हिजो पनि केही नपढी सुतेँ
के पढ्नु ?
के गरूँ?
सिगरेट फुक्छु
क्यासेट लाउँछु
उही बासी अल्छिलाग्दा गीतहरू बज्न थाल्छन्
अल्छी, के सार्हो अल्छी
के गरूँ ?