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"गिलासहरू रित्याएर / नवराज लम्साल" के अवतरणों में अंतर

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15:50, 31 मई 2017 के समय का अवतरण

गिलासहरू रित्याएर आफूलाई भरिरहें
त्यै मोरीलाई सम्झिएर आँखाबाट झरिरहें

पाइलैपिच्छे खतरा छ, पाइलैपिच्छे मृत्यु भेट्छु
एकै पल्ट बाँच्नलाई धेरै पल्ट मरिरहें

जहाँ टेक्छु मरुभूमि जहाँ देख्छु आगो लाग्छ
आफैं यात्री आफैं खोला आफैंमाथी तरिरहें

टेक्नेसम्म ठाउँ छैन खाने दाना-छाना छैन
ठूला-ठूला फाँटभरि जूनको सपना छरिरहें

दुई डुंगामा चढ्नेहरू कहिले वारि कहिले पारि
सङकटको धारले रेट्यो दोधारमा परिरहें