Last modified on 12 जून 2017, at 11:08

"मिनखा जूण सुंवार / जनकराज पारीक" के अवतरणों में अंतर

('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachn...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=जनकराज पारीक
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

11:08, 12 जून 2017 के समय का अवतरण

कावड़िया
कावड़ नाकै छोड,
थारै खांधै नै उडीकै
एक आदमी री अरथी
आदमी-
जिको उम्मीदां रो बेथाग बोझ ढोंवतो
अर रिंदरोही में अकारथ रोंवतो
मरणगाळ हुयग्यो,
आदमी-
जिको दुनियां-इयान रा
अनगणित सुपनां आंख्यां मैं लेय'र
अणचारी नींद सुयग्यो
थारै खांधै नै उडीकै

हुय सकै
थारै पगां रो परताप
अर खांधां रो हांगो
अधमरयै आदमी नै
दुबारा जियायदयै
अर मसाण होंती धरती री
बांझ होंवती कूख में
अमृतकुण्ड ल्यायदयै,
कावड़िया
तीर्थो सूं मुड़
अर काळ रै गाल में जांवती
जिया जूण सूं जुड़
मरणासन्न् मिनखां री
घुड़कती अरथ्यां
थारै खांधै नै उडीकै।