भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यो सम्झिने मन छ / दिनेश अधिकारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGeet}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | यो | + | |
− | तिमी नै भनिदेऊ ए जाने निठुरी | + | यो सम्झिने मन छ, म बिर्सूं कसोरी ? |
+ | तिमी नै भनिदेऊ ! ए, जाने निठुरी | ||
− | यी | + | यी औँला तिनै हुन् तिमीले चुमेका |
− | परेली यिनै | + | परेली यिनै हुन् तिमीले पुछेका |
− | म सक्तिनँ आफ्नै | + | म सक्तिनँ आफ्नै प्रतिबिम्ब छोप्न |
− | म सक्तिनँ छाती फुटाएर जोड्न | + | म सक्तिनँ छाती फुटाएर जोड्न |
− | पखाले यी आँखा पनि | + | पखाले यी आँखा पनि दृश्य उही छ |
− | जहाँ नै म हिँडे पनि | + | जहाँ नै म हिँडे पनि धर्ती उही छ |
न सक्छु म आकाश चिथोरेर फेर्न | न सक्छु म आकाश चिथोरेर फेर्न | ||
− | न सक्छु जूनको उज्यालो नै छेक्न | + | न सक्छु म जूनको उज्यालो नै छेक्न |
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:39, 23 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
यो सम्झिने मन छ, म बिर्सूं कसोरी ?
तिमी नै भनिदेऊ ! ए, जाने निठुरी
यी औँला तिनै हुन् तिमीले चुमेका
परेली यिनै हुन् तिमीले पुछेका
म सक्तिनँ आफ्नै प्रतिबिम्ब छोप्न
म सक्तिनँ छाती फुटाएर जोड्न
पखाले यी आँखा पनि दृश्य उही छ
जहाँ नै म हिँडे पनि धर्ती उही छ
न सक्छु म आकाश चिथोरेर फेर्न
न सक्छु म जूनको उज्यालो नै छेक्न