Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= उदय प्रकाश }} बादलों को सींग पर उठाए खड़ा है आकाश की पु...) |
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देर तक सिहरती रहती है उसकी त्वचा | देर तक सिहरती रहती है उसकी त्वचा | ||
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देर तक । | देर तक । | ||
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01:07, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
बादलों को सींग पर उठाए
खड़ा है आकाश की पुलक के नीचे
एक बूँद के अचानक गिरने से
देर तक सिहरती रहती है उसकी त्वचा
देखता हुआ उसे
भीगता हूँ मैं
देर तक ।