भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"राजधानी में बैल 3 / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= उदय प्रकाश }} सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा फिर ट...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= उदय प्रकाश | + | |रचनाकार=उदयप्रकाश |
+ | |संग्रह= एक भाषा हुआ करती है / उदय प्रकाश | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा | सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा | ||
− | |||
फिर टिका कुछ देर चमकता हुआ | फिर टिका कुछ देर चमकता हुआ | ||
− | |||
हल की नोक पर | हल की नोक पर | ||
− | |||
− | |||
घास के नीचे की मिट्टी पलटता हुआ सूर्य | घास के नीचे की मिट्टी पलटता हुआ सूर्य | ||
− | |||
बार-बार दिख जाता था | बार-बार दिख जाता था | ||
− | |||
झलक के साथ | झलक के साथ | ||
− | |||
जब-जब फाल ऊपर उठते थे | जब-जब फाल ऊपर उठते थे | ||
− | + | इस फ़सल के अन्न में | |
− | + | ||
− | इस | + | |
− | + | ||
होगा | होगा | ||
− | |||
धूप जैसा आटा | धूप जैसा आटा | ||
− | |||
बादल जैसा भात | बादल जैसा भात | ||
हमारे घर के कुठिला में | हमारे घर के कुठिला में | ||
− | |||
इस साल | इस साल | ||
− | |||
कभी न होगी रात । | कभी न होगी रात । | ||
+ | </poem> |
01:09, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा
फिर टिका कुछ देर चमकता हुआ
हल की नोक पर
घास के नीचे की मिट्टी पलटता हुआ सूर्य
बार-बार दिख जाता था
झलक के साथ
जब-जब फाल ऊपर उठते थे
इस फ़सल के अन्न में
होगा
धूप जैसा आटा
बादल जैसा भात
हमारे घर के कुठिला में
इस साल
कभी न होगी रात ।