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"इज़्ज़तपुरम्-1 / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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तो दाँत | तो दाँत | ||
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कच्ची हरियालियों को | कच्ची हरियालियों को | ||
चबाने / और | चबाने / और | ||
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बोझ / और भी | बोझ / और भी | ||
गरू पड़े | गरू पड़े | ||
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क्योंकि / ज्यादा देर | क्योंकि / ज्यादा देर |
11:24, 28 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
ठंडा हो चूल्हा
अनुपस्थित हो / धुआँ
खामोश हो / बरतन
और भड़की हो
भूखी आग
तो दाँत
अपनी जड़ों की
गीली मिट्टी / और
कच्ची हरियालियों को
चबाने / और
उजाड़ने पर
उतर आयें
जब / शुष्क आँतों की
मरोड़ पर
खोखले आदर्शों का
बोझ / और भी
गरू पड़े
क्योंकि / ज्यादा देर
सुस्ताना / और
खाली रहना
नहीं जानता
पेट / जीवन की
यात्रा में
नन्हीं तृषा
बीहड़ों में
भटके
उन्मुक्त रास्ते
अज्ञात में
खुलें