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"सचमुच बहुत देर तक सोए / मुकुट बिहारी सरोज" के अवतरणों में अंतर
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धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक | धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक | ||
लोगों ने सींची फुलवारी | लोगों ने सींची फुलवारी | ||
तुमने अब तक बीज न बोए । | तुमने अब तक बीज न बोए । | ||
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दुनिया जगा-जगा कर हारी, | दुनिया जगा-जगा कर हारी, | ||
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लोगों के इतिहास बन गए | लोगों के इतिहास बन गए | ||
तुमने सब सम्बोधन खोए । | तुमने सब सम्बोधन खोए । | ||
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15:37, 29 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
लोगों ने सींची फुलवारी
तुमने अब तक बीज न बोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
दुनिया जगा-जगा कर हारी,
ऐसी कैसी नींद तुम्हारी ?
लोगों की भर चुकी उड़ानें
तुमने सब संकल्प डुबोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
जिनको कल की फ़िक्र नहीं है
उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
लोगों के इतिहास बन गए
तुमने सब सम्बोधन खोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
’किनारे के पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से