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"रंग भरी नदी / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
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+ | खुले कुंतल, नग्न तन, स्वस्थ मन | ||
+ | बाहों के कुञ्ज में समां जाओ | ||
+ | फागुन आ गया है | ||
+ | पछवा भ रही है | ||
+ | मेरे चारों ओर गीत की रंग भरी जवान नदी बह रही है ! | ||
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15:03, 9 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
पलाशों की देह में चिनगी फूली है
आम और महुए का दर्द धरती पर लोट रहा है
कच्ची कचनार के पोर पोर में तृष्णा जग गयी है
कोयल ने दारु पी लिया है
बाहर मत निकलो
आओ मेरे पास
खुले कुंतल, नग्न तन, स्वस्थ मन
बाहों के कुञ्ज में समां जाओ
फागुन आ गया है
पछवा भ रही है
मेरे चारों ओर गीत की रंग भरी जवान नदी बह रही है !