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"बादलों पर पहरा / राजीव रंजन" के अवतरणों में अंतर

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जिस शाख पर सोन चिड़िया थी, उस पर आज बाज बैठा है।
 
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खून चूसने वाले जोकों के सर ही हमने आज ताज सजा रखा है।
 
खून चूसने वाले जोकों के सर ही हमने आज ताज सजा रखा है।
खजाना लूटने वालों को ही हमने खजाने का पहरेदार बना रखा
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नफरत की फसल बोने वाले को ही देश का कास्तकार बना रखा है।
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भारत माँ से प्यार को भी आज हमने व्यापार बना रखा है।
 
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मुट्ठी भर लोगों ने ही समन्दर पर कब्जा जमा रखा है।
 
मुट्ठी भर लोगों ने ही समन्दर पर कब्जा जमा रखा है।
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सूखी धरती पर नहीं बरसने वाले मेघों को तपन से जला देंगे।
 
सूखी धरती पर नहीं बरसने वाले मेघों को तपन से जला देंगे।
 
गीतों के छंद मेरे बन जाएँ अंगार, इससे पहले उसे सरसना होगा।
 
गीतों के छंद मेरे बन जाएँ अंगार, इससे पहले उसे सरसना होगा।
बंधन तोड़, समन्दर छोड़, बादलों को आज सूखे कुओं पर बरसना
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14:29, 9 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

जब पुरूशार्थ खामोशी की चादर ओढ़ चुप-चुप सोता है।
जब राजा धृतराश्ट्र बन अपने न्याय की आँखें खोता है।
जब धर्म, ईमान सारे बेईमानों के हाथों ही गिरवी होता है।
तब राश्ट्र अपनी किस्मत पर आठ-आठ आँसू रोता है।
जिस शाख पर सोन चिड़िया थी, उस पर आज बाज बैठा है।
खून चूसने वाले जोकों के सर ही हमने आज ताज सजा रखा है।
खजाना लूटने वालों को ही हमने खजाने का पहरेदार बना रखा है।
नफरत की फसल बोने वाले को ही देश का कास्तकार बना रखा है।
भारत माँ से प्यार को भी आज हमने व्यापार बना रखा है।
मुट्ठी भर लोगों ने ही समन्दर पर कब्जा जमा रखा है।
बरसने वाले बादलों पर भी आज पहरा लगा रखा है।
प्यासे लोगों ने तो बस सूखे कुएँ पर भीड़ लगा रखी है।
प्यास की त्रास बुझाए, ऐसी बरसात की आस लगा रखी है।
समन्दर पर बरसने वाले मेघों को सूखे कुएँ तक खींच लाए,
ऐसा राग मल्हार कोई गाए, उम्मीद मन में आज जगा रखी है।
गीत मेरे जेठ की दोपहर का आतप बन समन्दर को सुखा देंगे।
सूखी धरती पर नहीं बरसने वाले मेघों को तपन से जला देंगे।
गीतों के छंद मेरे बन जाएँ अंगार, इससे पहले उसे सरसना होगा।
बंधन तोड़, समन्दर छोड़, बादलों को आज सूखे कुओं पर बरसना होगा।