"भावना / राजीव रंजन" के अवतरणों में अंतर
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तुमसे जा लिपट गयी। | तुमसे जा लिपट गयी। | ||
प्यार का स्पर्श पा तेरा | प्यार का स्पर्श पा तेरा | ||
छुई-मुई सा वह सिमट गयी। | छुई-मुई सा वह सिमट गयी। | ||
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पर, ताप का एक एहसास | पर, ताप का एक एहसास | ||
पा पल में पिघल गयी। | पा पल में पिघल गयी। | ||
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के दुर्वा-दल पर, वह | के दुर्वा-दल पर, वह | ||
शबनमी बूँद बन बिखर गयी। | शबनमी बूँद बन बिखर गयी। | ||
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भावना मेरी निकल बाहर | भावना मेरी निकल बाहर | ||
तुमसे जा लिपट गयी। | तुमसे जा लिपट गयी। |
09:59, 11 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
निष्कपट हृदय का पट खोल,
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
प्यार का स्पर्श पा तेरा
छुई-मुई सा वह सिमट गयी।
वर्षों से जमीं थी जो हृदय
पर, ताप का एक एहसास
पा पल में पिघल गयी।
धीरे से हृदय में मेरे पायल
बन रून-झुन सा थिरक गयी।
अभी-अभी हरे हुए मन
के दुर्वा-दल पर, वह
शबनमी बूँद बन बिखर गयी।
निष्कपट हृदय का पट खोल
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
हृदय के एक कोने में सोयी
बुझी सी आग को फिर उपट गयी।
संवेदना की आग में पिघल
भावना मेरी अन्तर से निकल
पलकों पर आ ठिठक गयी।
घटा बन आँखों को नम कर
न जाने यथार्थ के वियावान
में कहाँ भटक गयी।
भावना भोली न जाने नींद
बन आँखों से कब उचट गयी।
निश्कपट हृदय का पट खोल
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
प्यार का स्पर्श पा तेरा
छुई-मुई सा वह सिमट गयी।