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"हिन्दुस्तानी अमीर / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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बाक़ी अपनी अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं.
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01:07, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण

किस तरह की सरकार बना रहे हैं
यह तो पूछना ही चाहिए
किस तरह का समाज बना रहे हैं
यह भी पूछना चाहिए

हमारे घरों की लड़कियों को देखिए
हर समय स्त्री बनने के लिए तैयार
सजी बनी

हिन्दुस्तानी अमीर की भूख
कितनी घिनौनी होती है
बड़े बड़े जूड़े काले चश्मे
पाँव पर पाँव चढ़ाए
हवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती है
चिकने गोल-गोल मुँह
अँग्रेज़ी बोलने की कोशिश करते हुए

हर क़िस्म का भारतीय अमीर होकर
एक क़िस्म का चेहरा बन जाता है
और अगर विलायत में रहा हो तो
उसका स्वास्थ्य इतना सुधर जाता है
कि वह दूसरे भारतीयों से
भिन्न दिखाई देने लगता है
उनमें से कुछ ही थैंक्यू अँग्रेज़ी ढंग से कह पाते हैं
बाक़ी अपनी-अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं।